जिन्दगी भी अजिब पहली है, सब जानते हुए भी धोखा खाते है, एक दूसरे को पछाड़ने में जीवन दाव पर लगा देते है, झूट सच का सहारा लेकर आगे बढ़ना चाहते है. बच्चे बाप को धोखा देते है. फिर भी सबको अपने बच्चे प्यारे है. माँ चाहते हुए भी उनका सबक नहीं सिखाना चाहती है. यही सर्कस है. यहाँ जोकर भी मिलते है. विदूषक भी यही है. एक पढ़ लिख गया, दूसरों को जलने की जगह यही है.उसका सब कुछ ठीक हो गया मेरा क्यू नहीं हुआ इसी पर चिंतन जारी है, मंथन भी यही होता है. उसकी लकीर कैसे छोटी की जाये यही नतीजा है. वो मुझसे पहले क्यू मरा यही सोच का विषय है ? बहु सास से क्यू झगडा नहीं करती यही यक्ष प्रश्न है. समझोते होते है. टूट जाते है ? टूटने की न इसको चिंता है न उसको. सबके लिये माँ बाप जिम्मेदार है. वादे यही किये जाते है. टूटते भी यही है. मेहनत कश जिन्दगी भर मेहनत करता है. चापलूस बाज़ी मार ले जाते है.दुःख तो सबको होता है किन्तु कोई आगे नहीं आना चाहता. कोई देता है हज़ार लोग मांगने वाले है. किसको दे किसको न दे यही सवाल यहाँ खड़ा होता है. जिसको मिल गया वही आँखे तरेरता है. जिसका भला करो वही बुरा चाहता है. पति पत्नि मे क्यू झगडा हुआ ? उतर सब चाहते है. एक चोट खाया दूसरा हँसता है. रोंग साईड हम है, सही चलने वाले को गाली यही दी जाती है ? कोन अपना कोन पराया है ? यही पहचान नहीं होती है. अपना ही करतूत कर जाता है तब दुश्मन की याद आती है. "अगर सभी अपने तो बेगाने कहा जाते "गीत भी यही गाया जाता है. नीव के पत्थर की कोई किमंत नहीं कलश यही पूजा जाता है. हम से कोई बड़ा नहीं यही प्रयास होता है.इंसान इंसान के खून की आंखरी बूंद यही चुसी जाती है. किराये की खोक, दुसरे माँ बाप भी मिल जाते है, कृष्ण और कंस यही है. रावण, राम यही मिलते, पाप पुन्य की नगरी यही है, नास्तिक और आस्तिक यही बसते है, कर्म अकर्म, स्वर्ग- नरक यही है, भ्रष्टाचार भी यही होता लिपा पोता भी यही जाता है. बेटियों के साथ दुराचार और इनका कन्या दान भी यही होता. माँ - बाप उपेक्षित है तो श्रवन कुमार भी यही है. सत्यवान और सावित्री यही बसते है, पति पत्नी एक दुसरो को धोका भी यही देते है. जाने का गम और आने की ख़ुशी भी यही होती है. कमाल की यह जिन्दगी है , खट्टे मीठे अनुभव के साथ गुजरती है. www.humaramadhyapradesh.com
Wednesday 22 August 2012
Tuesday 21 August 2012
शामू एक उदासीन मुखिया -------------------------------
शामू के घर में उसके दो बेटे बहुये, नाती और पत्नी थे, बेटे नौकरी पर थे जबकि बहुये पढ़ी लिखी होने के बाद भी घर के काम में सास का हाथ बटाती थी. शामू भी खुद सरकारी आफिस में बाबु था, बाप दाद
ाओ की खेती थी. खेती से खाने को अनाज भी मिल जाता था साथ ही कुछ आय भी हो जाती थी. संक्षेप में शामू का परिवार सुखी था. शामू की तनखाह बैंक में जमा होती थी, इसे घर के लिए खर्च करने का अधिकार बेटो को दे दिया था. बेटे भी देखभाल कर खर्चा करते थे. शामू का हाथ खुला था हर जरूरत मंदों की मदद के लिए तैयार रहता था. शामू चौतीस बरस सरकार की नौकरी कर अब रिटायर्ड हो गया. अब उसे तनखाह नहीं पेंशन मिलती थी. शामू ख़ुदार था घर के लिए बेटो से पैसे नहीं लेता था इसकारण शामू को लगा पेंशन से काम नहीं चलने वाला इसलिए एक नौकरी भी कर ली थी, ताकि घर को चलाने में पैसा संकट न बने. चूँकि शामू एक परिवार का मुखिया था, इस कारण उसे ही हर समस्या के लिए निर्णय लेना पड़ता था, पत्नी उसके निर्णय से कभी सहमत नहीं होती थी, नौकरी में वक़्त नहीं मिलने के कारण शामू अपने निर्णय का पालन करने के लिए कभी जोर भी नहीं डालता था. जो निर्णय हो जाता उसे वह भी मान लेता था. बच्चो के बड़े होने के बाद तो स्थिति में और बदलाव आ गया , उसके किसी भी निर्णय पर कभी सहमती नहीं बनती थी, पत्नी और बेटो का ही निर्णय अंतिम होता था, रिटायर्मेंट के बाद शामू को लगा कि परिवार उसकी उपेक्षा कर रहा है, शामू ने भी सोचा जब सालो तक वह उपेक्षित होता रहा इसलिए अब उपेक्षा सहने में क्या हर्ज है ? इसीलिए वह भी एक तरह परिवार से भिन्न विचार नहीं रखने का आदि हो गया था, इसकी एक वजह थी घर में कलह न हो, यदि कभी धोखे से शामू ने कोई निर्णय सुना दिया तो कलह की स्थिति निश्चित निर्मित हो जाती थी, कई बार तो ऐसा होता था शामू के निर्णय कई महीनो बाद परिवार मानने को बाध्य होता था. इसके कारण परिवार को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता था. निवृति के बाद तो शामू एक पैसे का भी नुकसान बर्दाश्त नहीं कर पाता था, शामू यह सोचता था कि ये पैसे उसके नाती पोतो और बच्चो के काम आयेंगे लेकिन इस ओर से सब लापरवाह थे, तब शामू और दुखी होजाता. छुटी के दिन शामू अपने कमरे में ही बिताता था. परिवार को कभी उसकी चिंता नहीं रही. लेकिन शामू परिवार के लिए ही चिंतित रहता था. शामू की सोच थी कि अब बच्चे बड़े हो गए जो निर्णय करना है करे वह इस और से
उदासीन हो गया था. इन सब के बाद शामू के जीवन प्रबंधन में कोई कोताही नहीं बरती जाती थी. शामू इसे मात्र प्रोटोकाल मानता था. इसकी उसके लिए कोई अहमियत नहीं थी. शामू सोचता था अब परिवार को उसकी जरुरत नहीं है. एक दिन शामू कही चला गया और लौटकर फिर कभी नहीं आया. परिवार को अब शामू के विचार और निर्णय प्रासंगिक लगते है. " अब पछतावे क्या होत है, जब चिड़िया चुग गयी खेत "
उदासीन हो गया था. इन सब के बाद शामू के जीवन प्रबंधन में कोई कोताही नहीं बरती जाती थी. शामू इसे मात्र प्रोटोकाल मानता था. इसकी उसके लिए कोई अहमियत नहीं थी. शामू सोचता था अब परिवार को उसकी जरुरत नहीं है. एक दिन शामू कही चला गया और लौटकर फिर कभी नहीं आया. परिवार को अब शामू के विचार और निर्णय प्रासंगिक लगते है. " अब पछतावे क्या होत है, जब चिड़िया चुग गयी खेत "
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रामलाल
अनेको के अनेक स्वभाव होते है. रामलाल का भी अपना स्वभाव था पत्नी उसके साथ रहती थी . बाल बच्चो के सुख से वंचित था . इसे वह पूर्व जन्म का फल मानता है. अपनी खेती बाड़ी को अपनी संतान समझता है. नजदीकी रिश्तेदार भी कोई नहीं है. गाँव वाले ही रिश्तेदार है. गाँव के बच्चे ही उसके बच्चे है. गाँव में किसी के यहाँ कुछ भी हो जाये रामलाल पहले पहुचता था. सुख की घडी में वह ख़ुशी में शामिल होता वही दुःख की घडी में कंधे से कंधा मिलाकर दौड़ धुप करता था . यहाँ तक कि गाठ के पैसे लगाने से भी नहीं चुकता था . लगाये गए पैसे कभी वापिस नहीं लेता. किसी के मृत्यु पर सब सामान वही लाता,कपाल क्रिया होने के बाद ही वापिस लोटता था . ऐसा करना रामलाल के लिए पुन्य का काम था . बच्चियों की शादी में खुद ही आगे बढ़कर भाग लेता था . उसको जरुरी सामान का दहेज भी वही देता था . कुल मिलाकर परोपकारी जीव था. एक दिन अचानक समय बदला और रामलाल के पास का धन चोर उड़ाकर ले गए. धन की कमी के कारण परोपकार का धर्म नहीं निभा पा रहा था. इस धर्म को सतत चलायमान रखने के लिए उसे अपनी खेती भी बेच
दी. इससे मिले पैसो से ही वह अपना गुजारा और परोपकार का काम करता था. यह धन भी जादा दिन नहीं चला. कुछ दिन बाद रामलाल की पत्नी चल बसी उसके अन्त्य संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे गाववाले कोई सामने नहीं आये. जिले की एक संस्था ने अन्त्य कर्म किया. रामलाल का भी मृत्यु के बाद यही हाल हुआ. गाववाले कहते सुने गए कि हमने किसी काम के लिए रामलाल से नहीं कहा था. रामलाल का शौक था उसने किया. रामलाल ने हमारा साथ दिया जरुरी नहीं कि हम भी उसका साथ दे. रामलाल की आत्मा ने गरज कर कहा गाव वालो मै आपके अब काम नहीं आ सकुंगा मुझे क्षमा करना. मुझे इस बात का कोई दुःख नहीं कि मेरा अन्त्य कर्म लावारिश लाश जैसा हुआ. मै जानता हूँ कि वारिस शव और लावारिश शव दोनों को जलकर पंच तत्व में मिलना होता है. इसलिए लावारिश लाश की तरह जलने में मुझे कोई दुःख नहीं हुआ. मेरा शरीर भी पंच तत्व में ही मिला, यदि मुझे कोई साथ देता तब मेरी की सेवा निस्वार्थ नहीं कहलाती और आप सब मुझे परोपकारी नहीं कहते है. आपके इस ऋण के लिए आभारी हूँ. परोपकारी का हश्र यही होता है.
दी. इससे मिले पैसो से ही वह अपना गुजारा और परोपकार का काम करता था. यह धन भी जादा दिन नहीं चला. कुछ दिन बाद रामलाल की पत्नी चल बसी उसके अन्त्य संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे गाववाले कोई सामने नहीं आये. जिले की एक संस्था ने अन्त्य कर्म किया. रामलाल का भी मृत्यु के बाद यही हाल हुआ. गाववाले कहते सुने गए कि हमने किसी काम के लिए रामलाल से नहीं कहा था. रामलाल का शौक था उसने किया. रामलाल ने हमारा साथ दिया जरुरी नहीं कि हम भी उसका साथ दे. रामलाल की आत्मा ने गरज कर कहा गाव वालो मै आपके अब काम नहीं आ सकुंगा मुझे क्षमा करना. मुझे इस बात का कोई दुःख नहीं कि मेरा अन्त्य कर्म लावारिश लाश जैसा हुआ. मै जानता हूँ कि वारिस शव और लावारिश शव दोनों को जलकर पंच तत्व में मिलना होता है. इसलिए लावारिश लाश की तरह जलने में मुझे कोई दुःख नहीं हुआ. मेरा शरीर भी पंच तत्व में ही मिला, यदि मुझे कोई साथ देता तब मेरी की सेवा निस्वार्थ नहीं कहलाती और आप सब मुझे परोपकारी नहीं कहते है. आपके इस ऋण के लिए आभारी हूँ. परोपकारी का हश्र यही होता है.
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