Wednesday 22 August 2012

जीवन *****

जिन्दगी भी अजिब पहली है, सब जानते हुए भी धोखा खाते है, एक दूसरे को पछाड़ने में जीवन दाव पर लगा देते है, झूट सच का सहारा लेकर आगे बढ़ना चाहते है. बच्चे बाप को धोखा देते है. फिर भी सबको अपने बच्चे प्यारे है. माँ चाहते हुए भी उनका सबक नहीं सिखाना चाहती है. यही सर्कस है. यहाँ जोकर भी मिलते है. विदूषक भी यही है. एक पढ़ लिख गया, दूसरों को जलने की जगह यही है.उसका सब कुछ ठीक हो गया मेरा क्यू नहीं हुआ इसी पर चिंतन जारी है, मंथन भी यही होता है. उसकी लकीर कैसे छोटी की जाये यही नतीजा है. वो मुझसे पहले क्यू मरा यही सोच का विषय है ? बहु सास से क्यू झगडा नहीं करती यही यक्ष प्रश्न है. समझोते होते है. टूट जाते है ? टूटने की न इसको चिंता है न उसको. सबके लिये माँ बाप जिम्मेदार है. वादे यही किये जाते है. टूटते भी यही है. मेहनत कश जिन्दगी भर मेहनत करता है. चापलूस बाज़ी मार ले जाते है.दुःख तो सबको होता है किन्तु कोई आगे नहीं आना चाहता. कोई देता है हज़ार लोग मांगने वाले है. किसको दे किसको न दे यही सवाल यहाँ खड़ा होता है. जिसको मिल गया वही आँखे  तरेरता है. जिसका भला करो वही बुरा चाहता है. पति पत्नि मे क्यू झगडा हुआ ? उतर सब चाहते है. एक चोट खाया दूसरा हँसता है. रोंग साईड हम है, सही चलने वाले को गाली यही दी जाती है ? कोन अपना कोन पराया है ? यही पहचान नहीं होती है. अपना ही करतूत कर जाता है तब दुश्मन की याद आती है. "अगर सभी अपने तो बेगाने कहा जाते "गीत भी यही गाया  जाता है. नीव के पत्थर की कोई किमंत नहीं कलश यही पूजा जाता है. हम से कोई बड़ा नहीं यही प्रयास होता है.इंसान इंसान के खून की आंखरी बूंद यही चुसी जाती   है. किराये की खोक, दुसरे माँ बाप भी मिल जाते है, कृष्ण और कंस यही है. रावण, राम यही मिलते, पाप पुन्य की नगरी यही है, नास्तिक और आस्तिक यही बसते है, कर्म अकर्म, स्वर्ग- नरक यही है, भ्रष्टाचार भी यही होता लिपा पोता भी यही जाता है. बेटियों के साथ दुराचार और इनका कन्या दान भी यही होता. माँ - बाप उपेक्षित है तो श्रवन कुमार भी यही है. सत्यवान और सावित्री यही बसते है, पति पत्नी एक दुसरो को धोका भी यही देते है. जाने का गम और आने की ख़ुशी भी यही होती है. कमाल की यह जिन्दगी है , खट्टे मीठे अनुभव के साथ गुजरती है.  www.humaramadhyapradesh.com

Tuesday 21 August 2012

शामू एक उदासीन मुखिया -------------------------------


रामलाल


अनेको के अनेक स्वभाव होते है. रामलाल का भी अपना स्वभाव था पत्नी उसके साथ रहती थी . बाल बच्चो के सुख से वंचित था . इसे वह पूर्व जन्म का फल मानता है. अपनी खेती बाड़ी को अपनी संतान समझता है. नजदीकी रिश्तेदार भी कोई नहीं है. गाँव वाले ही रिश्तेदार है. गाँव के बच्चे ही उसके बच्चे है. गाँव में किसी के यहाँ कुछ भी हो जाये रामलाल पहले पहुचता था. सुख की घडी में वह ख़ुशी में शामिल होता वही दुःख की घडी में कंधे से कंधा मिलाकर दौड़ धुप करता था . यहाँ तक कि गाठ के पैसे लगाने से भी नहीं चुकता था . लगाये गए पैसे कभी वापिस नहीं लेता. किसी के मृत्यु पर सब सामान वही लाता,कपाल क्रिया होने के बाद ही वापिस लोटता था . ऐसा करना रामलाल के लिए पुन्य का काम था . बच्चियों की शादी में खुद ही आगे बढ़कर भाग लेता था . उसको जरुरी सामान का दहेज भी वही देता था . कुल मिलाकर परोपकारी जीव था. एक दिन अचानक समय बदला और रामलाल के पास का धन चोर उड़ाकर ले गए. धन की कमी के कारण परोपकार का धर्म नहीं निभा पा रहा था. इस धर्म को सतत चलायमान रखने के लिए उसे अपनी खेती भी बेच
 दी. इससे मिले पैसो से ही वह अपना गुजारा और परोपकार का काम करता था. यह धन भी जादा दिन नहीं चला. कुछ दिन बाद रामलाल की पत्नी चल बसी उसके अन्त्य संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे गाववाले कोई सामने नहीं आये. जिले की एक संस्था ने अन्त्य कर्म किया. रामलाल का भी मृत्यु के बाद यही हाल हुआ. गाववाले कहते सुने गए कि हमने किसी काम के लिए रामलाल से नहीं कहा था. रामलाल का शौक था उसने किया. रामलाल ने हमारा साथ दिया जरुरी नहीं कि हम भी उसका साथ दे. रामलाल की आत्मा ने गरज कर कहा गाव वालो मै आपके अब काम नहीं आ सकुंगा मुझे क्षमा करना. मुझे इस बात का कोई दुःख नहीं कि मेरा अन्त्य कर्म लावारिश लाश जैसा हुआ. मै जानता हूँ कि वारिस शव और लावारिश शव दोनों को जलकर पंच तत्व में मिलना होता है. इसलिए लावारिश लाश की तरह जलने में मुझे कोई दुःख नहीं हुआ. मेरा शरीर भी पंच तत्व में ही मिला, यदि मुझे कोई साथ देता तब मेरी की सेवा निस्वार्थ नहीं कहलाती और आप सब मुझे परोपकारी नहीं कहते है. आपके इस ऋण के लिए आभारी हूँ. परोपकारी का हश्र यही होता है.