Wednesday 25 February 2015

भूमि अधिग्रहण बिल -------------------------

यह एक ऐसा बिल सरकार ने लायी है जिसके जरिये देश की विकास दिशा तय होगी. यह बिल मोदी सरकार ने लाया है इसी कारण विरोध हो रहा है. मोदी जो भी काम करेंगे उसमे विरोध का होना स्वाभाविक है. मोदी और विरोध एक दुसरे के पर्यायवाची है. मोदी के हर अच्छे काम का विरोध होना है. इस विरोध के लिए अन्ना अपने गाव से विमान से आये है. कांग्रेस से जंतर मंतर पर विरोध आयोजित किया किया गया है . कुल मिलाकर इन दोनों के समर्थक भी पूरी तरह से इस विरोध में शामिल नहीं हुए. विरोधियो की ताकत का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है? मैंने इस पुरे बिल को नहीं पढ़ा केवल एक बात मेरे समझ में आयी कि अधिग्रहण के पहले किसानो की सहमती का प्रावधान हटा दिया गया है. क्या अब तक जिन सरकारों ने किसानो की भूमि ली उस सबके लिए किसानो ने सहमती दी है. यदि दी है तो उसे उजागर करना चाहिए. मै एक किसान हूँ मेरी जमींन कांग्रेस सरकार के समय रेल और राष्ट्रीय राजमार्ग ने ली. मुझसे किसी ने सहमती नहीं ली और नहीं मेरे गाव के किसानो से ऐसी सहमती ली गयी है. यह एक ऐसा प्रावधान था जो किसी काश्तकार के इगो को बनाये रखने के लिए था जिसे उस समय की सरकार ने हाईड कर रखा था. मोदी जी ने किसानो को भ्रम में नहीं रखा वरन इस प्रावधान को उजागर कर दिया. इसी कारन विरोध शुरू हो गया. हमसे भ्रम क्यों दूर किया गया. मोदी ने देश के किसानो को बता दिया धोखा अब नहीं चलेगा. किसानो की जमीन के बदले तीन गुना मुवावजा भी देने का प्रावधान भी इस सरकार ने रखा है . जबकि हमारे जमीन के लिए बाजार भाव से भी कम मुवावजा मिला. हम केवल इसीलिए खुश है कि जिस जमीन की किमंत एक लाख रुपयों से भी कम थी इन परियोजनायो के कारण यह जमीन दस लाख से भी जयादा किमंत की हो गयी. खरीद दार अनेक है किन्तु कोई भी किसान जमींन बेचने को तैयार नहीं. यह सत्य है. आने वाली परियोजना के कारण एकड़ में बिकने वाली जमीन फुट में बिकेगी. किसानो की तक़दीर इस बिल से खुल गयी ऐसा मेरा मानना है.यह बिल किसानो के हित में है इसमें कोई शंका और कुशंका को जगह नहीं है. जनता ने मोदी को जनाधार दिया है उसे पाच साल काम करने दो यदि गलत काम करेगी जनता इस सरकार को हटा देगी. अन्ना और कांग्रेस को विरोध करने के जनता ने मतदान नहीं किया है. ये विरोधी इस मर्म को क्यों नहीं समझते. मोदी को विकास के लिए जनता ने मतदान किया है विरोधी विरोध कर जनता का अपमान नहीं कर रहे है? यह देश के विकास के लिए विचारणीय विषय हो सकता है .

Tuesday 24 February 2015

हर घर और देश में यह हो रहा है.

क्ति नहीं 
परस्थितिया बदलती है.
किन्तु दोष व्यक्तियों पर ही मढ़ा जाता है. 
हर कोई अच्छे अच्छे से करने का प्रयास करता है. 
समय ही ख़राब होता है. 
कोई समय को दोष नहीं देता.
तलवार हमेशा अपनों पर ही गिरती है.
इसीलिए आज के दोस्त कल के
बेगाने बन जाते है.
कृष्ण भी वही था.
पांडव और दुर्योधन भी एक थे.
परिस्थितिया बदली.
द्रोणाचार्य भीष्म एक तरफ थे
कृष्ण अर्जुन के सारथी थे.
विश्व के कठिनतम महाभारत की
तैयारी दोनों तरफ से तरफ हो रही थी.
कृष्ण अपने से लड़ने की ताकत गीता से
अर्जुन को दे रहे थे.
वही अपनी ताकत पर कौरव अपने
आपको तीरंदाज मान रहे थे.
युध्द हुआ,
अपने दुश्मन हुए.
और महाभारत शुरू हो गया.
अब महाभारत प्रासंगिक नहीं है.
हर घर और देश में यह हो रहा है.

Monday 23 February 2015

क्यों ये राजनेता अपने प्रकरण का न्याय जल्दी चाहते है ------------------------------------------------------------

क्यों ये राजनेता अपने प्रकरण का न्याय जल्दी चाहते है
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आज मैंने एक पूर्व मुख्य मंत्री को न्याय में देरी होने की तकलीफ को देखा. तीन दिन की देरी भी इनके लिए कई सालो के देरी लगती है. इसके लिए उन्होंने राज्यपाल के निर्णय का भी इंतजार नहीं किया और सीधे राष्ट्रपति के पास पहुच गए. वहा सभी विधायको की परेड करने की भी तैयारी भी कर ली . इन विधायको को बाकायदा तीन चार्टेड प्लेन से ले जाया गया. इस सब के लिए केवल एक कारण था न्याय जल्द से जल्द मिले. मुझे इनकी न्याय प्राप्ति की जल्दी पर हैरानी हुयी. जो ये राजनेता न्याय के लिए इतनी जल्दी करते है वे क्यों आम आदमी के देरी के प्रति असवेंदंशील हो जाते है ? न्याय प्राप्ति की जल्दी जितनी इनको है उतनी ही जल्दी एक सामान्य व्यक्ति को है ? ये भूल जाते है ? सामान्य तौर पर एक मंत्रालय में एक छोटे से काम के लिए एक से दो महीने लग जाते है. फिर क्यों ये राजनेता अपना काम जल्दी हो जाए यह उमीद करते है ? सामान्य व्यक्ति जैसा धीरज इनके पास क्यों नहीं है ? सामान्य व्यक्ति अपने तरीके से अपना समाधान निकालता है उसके पास और कोई नहीं वह अपनी जंग उन लोगो से लड़ता है जिनके लिए उसने मतदान किया है. अपनी कुर्सी के लिए यदि कोई राजनेता समाधान तीन दिन में चाहता है तब सामान्य व्यक्ति को उसका न्याय एक दिन में मिलेगा तब ही सुशासन का उदय होगा .
सर यही जीवन है.
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यह सच की उम्र के आंकड़े के साथ इस उम्र में जो हमने जो ग्राफ तैयार किया होता है वह पीक को छू कर फिर नीचे आ जाता है और जैसे ही नीचे आता है. वही बर्ताव शुरू हो जाता है जो हमने किया था. अनेक लोग इसे जनरेशन गेप कहते है. संस्कारित माँ बाप इसे मानने को तैयार नहीं ? किन्तु यह सच है कि आज के बुजुर्ग आज उपेक्षित है. इनको उपेक्षा हर क्षेत्र में मिलती है. चाहे वह कार्य क्षेत्र हो या घर, हर स्थान में उपेक्षा का भाव देखने को मिलता है. कार्य क्षेत्र में आप कुछ भी बोलो उसका कोई महत्व नहीं,एक नवजवान अनेक गलतियों करने के बाद भी वह सितारा हो जाता है. यह बुजुर्ग अपनी इच्छा से न जी सकता है और ना ही जो कुछ चाहता है वह कर सकता है. अब उसका अनुशासन उनके हाथ में जो कभी आपकी ऊँगली पकड़कर चलता था. वह इस दायत्व का कर्ता धर्ता है , यही सनातन काल से चलता आ रहा है और चलता रहेगा. आज मेरे मेरे बगल में बस में एक बड़े नौकरशाह बैठे थे उनकी वेदना भी यही थी. उन्होंने अपनी वेदना बेबाक हो कर मुझे सुनाई बोले क्या करे यार दिन कटता नहीं है. खाना खाकर नींद आने लगती है रजाई ओढ़कर सो जाता हूँ. घर में सारा वातावरण आनन्दित रहता है केवल मै अपनी नींद सोता हूँ कोई यह पूछने नहीं आता कि आपको क्या हुआ है. ऐसे में अपने काम के लिए बस में बैठ जाता हूँ और याद करता हूँ कि आज कोंनसे काम निपटाना है. वह निपटाकर घर में इसीलिए थका मांदा आता हूँ कि रात की नींद सुख से सो सकू.सब को अच्छा लगता है इसीलिए मै भी यह क्रम रोज करता हूँ. सबको अच्छा लगे वही काम करता हूँ . आप जानते है इसमें कितना कष्ट होता है मैंने कहा सर जानता हूँ. वे बोले अब क्या कहना शेष है. मैंने कहा जो अशेष है वही शेष है. शेष ही तो जीवन का उत्प्रेरक है. यही हमें जीने को बाध्य करता है. सर यही जीवन है

अग्नि परीक्षा देना हर किसी के नसीब में नहीं है. -------------------------------------------


सीता निर्दोष होते हुए भी उसने पति राम ने ही उसके निर्दोष होने के लिए अग्नि परीक्षा ली. सीता जी ने यह परीक्षा पास कर ली. इसी कारण पञ्च कन्या में हम प्रात: स्मरण के जरिये उनको याद कर अपना दिन स्वर्णिम बनाते है. यही हाल कुछ मोदी के साथ हो रहा है. अब तक कोई चुनाव नहीं हारने वाले व्यक्ति को आज धराशाही होना पड़ा .कल तक जो अर्श पर था आज फर्श पर है. इस व्यक्ति के निर्दोष होते हुए भी फर्श पर आना पड़ा. मोदी जी के नसीब में यही लिखा है. उनका प्रधान मंत्री बनने तक के सफ़र में उन्हें कई अग्नि परीक्षा देनी पड़ी, और सबमे वे निर्दोष साबित हुए. एक समय में निर्दोष होते हुये भी अटल बिहारी जैसे महामना प्रधान मंत्री ने उन्हें राष्ट्ध्रम सीखने की हिदायत दी थी, किन्तु यह हिमालय पर्वत अपने जगह और अपने सिधांत पर डटा रहा और प्रधान मंत्री के पद तक पंहुचा, यही नहीं अटल जी को भारत रत्न से विभूषित भी किया. अपने आप में यह एक उदाहरण हो सकता है. राष्ट धर्म के सबक के कारण ही वे ऐसा कर सके. भारत की छवि बनाने में उनका कोई मुकाबला कोई आज तक जो कोई नहीं कर सका.उन्होंने कर दिखया. वे राजनीती को जानते है इसीलिए शःने शःने अपने हिसाब से मुख्य मंत्रियो की जमावट का प्रयोग शुरू किया. ताकि अपने हिसाब से एक नयी राजनीती का स्वाद जनता चख सके.अब तक के प्रयोग उनके सफल रहे किन्तु दिल्ली के प्रयोग ने उन्हें पटक दिया. यह सच है कि पटकनी व्यक्ति अपनों से ही खाता है वरना विरोधी को क्या मालूम उनके पहने सूट की किमंत क्या थी ? विरोधीयो ने उनके बराक ओबामा के लिए पहने सूट को ही मुद्दा बना लिया. अतिथि को यह बताना जरुरी है कि हम किसी से कम नहीं है .यह शालीनता है. वैसे भी किसी की व्यक्तिगत पहनावे पर किसी को कुछ भी कहने का हक्क नहीं है. अब वे अपने इस सूट को देश के लिए नीलाम करने की सोच रहे है. ऐसा व्यक्ति क्या अहंकारी हो सकता है. कुछ लोगो ने उन्हें तानाशाह तक कह डाला, जबकि वे एक जिन्दा दिल इन्सान है. केजरीवाल को चाय पर बुलाकर उनके पास बड़ा दिल है यह बता दिया. सबकी सुनने के बाद अपना निर्णय सुनाने वाला यह साधारण प्रधान मंत्री क्या ताना शाह हो सकता है. सादगी से अपना जन्म दिन मनाया.एक आरोप उन पर यह भी लगाया जाता है कि वे विरोधियो की नहीं सुनते. क्यों सुने. इनकी सुन सुन कर ही इस पद पर आये अब भी सुने? यह उनकी ताकत है देश के लिए उनकी तपस्या है. आज वे विरोधियो की सुनकर देश का कभी भला नहीं कर सकते. जो देश के लिए सर्वोत्तम होगा यही वे करते है. दाल रोटी खाने वाला प्रधान मंत्री कभी उग्र नहीं हो सकता. मोदी की नांव उनके अपने मांझी ने ही डुबोई है.

जीतम राज मांझी का क्या पाप है -----------------------------------

जीतम राज मांझी का क्या पाप है
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आज के इस युग में कोई भी व्यक्ति अपने बारे में सच बोलने से कतराता है.मैंने 63 साल की उम्र में किसी मुख्य मंत्री को ऐसा बयान देते नहीं सुना है. कि मैंने रिश्वत ली है ? मांझी मेरे जीवन में पहले व्यक्ति है. शायद मांझी का यह बयान एतेहासिक है कि उन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्होंने रिश्वत ली है .मांझी ने इस नग्न को सत्य को स्वीकार किया है यही नहीं चूहे का रसायन शास्त्र बताने वाला बताने वाला व्यक्ति भी यही है. खुद की कमजोरी बताने के साहस बहुत कम लोग दिखा पाते है. एक राजनैतिक व्यक्ति बालासाहेब ठाकरे को मैंने देखा कि उन्होंने यह कबुल किया था कि वे बियर पीते है एक नहीं दो. ऐसा कहना सामान्य बात नहीं है. हमें ये इन महामानव से अपनों से कही दूर ले जाते है.मैंने कभी यह नहीं सुना कि किसी मुख्यमंत्री ने मांझी जैसा कार्य किया हो. यदि ऐसा ऐसा होता तो निश्चित ही देश के मुख्यमंत्री के बेटे आज किसी से नौकरी मांग कर रहे होते. देश के किसी भी मुख्य मंत्री का बेटा आज तक सामने नहीं आया. इसका अर्थ साफ़ कि है उन्होंने ऐसा काम किया जिसको उजागर करने से वे डरते थे. यह भी नहीं सुना कि देश के मुख्य मंत्रीयो ने उन्हें भेंट में मिले सामान को उजागर किया हो ? ऐसा करने का साहस केवल मोदी जी ने दिखाया है. अपनी कमजोरी को उजागर करना पाप नहीं नहीं साहस है. ऐसे साहसी व्यक्ति को सामाज से दूर करने का समय नहीं है यह वह समय है जब ऐसे लोगो को अपना आदर्श बनाया जाय. अपने बारे में कुछ भी बताना एक सामान्य बात नहीं है अपितु एक आसामान्य बात है. यह पाप कभी नहीं हो सकता. अपनी गलती को उजागर कर प्राय; चित करना है. मै मांझी के उनके रिश्वत लेने की बात को सहज नहीं लेता और किसी को सहज लेना भी नहीं चाहिए, यह बड़ा साहस है. इस साहस की चर्चा होनी चाहिए वही इसे पाप कह कर दबाया जा रहा है. मांझी का यह बयान देश के बदलाव की दिशा में संकेत हो सकता है.

मध्यम वर्ग -------------

मध्यम वर्ग
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देश की जनता, मकान, बिजली और पानी यहाँ तक कि सरकार से जो कुछ भी फुकट में मिलता है. लेने के लिए लालायित है, हर समस्या का समाधान फ्री में होना चाहिए. यह देश के विकास के लिए अत्यंत ही दुर्भाग्य पूर्ण है. सब यदि फुकट में दे दे तो क्या देश का विकास होगा ? यह चिंता राजनेताओ को होना चाहिए किन्तु राजनेता इस और आँख बंद किये है. करोडो रूपये इसी में जा रहे है. सस्ता अनाज देना, फुकट में तीर्थ यात्रा कराना क्या देश के मध्यम वर्ग के दिए टेक्स का दुरूपयोग नहीं है ? मेरे एक आंकलन के अनुसार आज की इस स्थिति में कोई गरीब नहीं बचा है. घर में काम करने वाली बाईया 5000 से छे हजार रूपये महीने अपनी शर्तो पर कमाती है. उनका पति भी इतना ही कमाता होगा. इस प्रकार उनकी वार्षिक आय लगभग एक लाख पचास हजार रूपये है. ये लोग सरकार की जमींन पर फुकट में लाखो रुपयों का मकान बनाकर रह रहे है. पानी नगर निगम फ्री में दे रहा है. बिजली की चोरी का कोई हिसाब ही नहीं है. सस्ता अनाज सरकार दे रही है. उसे बेचकर वे अच्छा अनाज खुद अपने बचो के साथ खा रही है ? ये सब हमारी पार्टी को जिताए इसी के लिए इन्हें हर राजनैतिक पार्टी इनको पाल रही है वही किसान जो देश का सबसे बड़ा मेहनतकश व्यक्ति है उसका अनाज बिना बोनस के सरकार खरीद रही है. जिन्हें अपनी गरीबी को दूर करने के लिए इन्हें भयानक मेहनत करनी चाहिए वही सरकार उन्हें सब फ्री में दे रही है वही मध्यम वर्ग उस पर आरोपित टेक्सो के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा है और यथा समय सब टेक्सो का भुगतान कर रहा है. बीजेपी से यह अपेक्षा थी कि कांग्रेस के पैदा किये इस इस विरोध को अलग कर एक सामान व्यवस्था लागू करेगी बीजेपी इसमें सफल नहीं हुयी वह भी उसी रईसी के रास्ते पर चल रही है जो कभी कांग्रेस ने उन्हें दिखाया था. आम पार्टी तो इससे भी आगे निकल गयी. बीजेपी कश्मीर में 370 को समाप्त करने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है. जबकि इस विद्यमान सकंट को दूर करने में आज तक किसी मुख्य मंत्री ने कोई इच्छा नहीं दिखाई है .अरबो की जनसँख्या वाले देश का प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री आज भी संचार के तंत्र का उपयोग नही कर पा रहा है. इसीका दुःख है. कुल मिलाकर जहा मध्यम वर्ग इनकी समस्या को भोग रहा है और आज भी वही पर है.

हमारी पीढ़ी ने क्या किया-


अभावो में जिस पीढ़ी ने जीवन काटा उसे इस पीढ़ी को तो यही चिंता रहेगी कि उसके बाल बच्चे अभावो में न जीये. इसीकारण जो भी नौकरी मिली उसीमे जीवन खपा दिया. नौकरी भी इतनी इमानदारी से की कि आज कल के युवा उन्हें आदर्श मानते है. ( आदर्श न तो पेट भरता है और नहीं पैसा देता है ) नौकरी को आत्म सात कर लिया इसीकारण बच्चे कैसे बड़े हो गए यही अब तक यह समझ में नहीं आया . जो नौकरी में बताया उसे सुबह से लेकर रात तक किया. सुबह उठकर काम पर जाना और रात को थके मांदे वापस आना इसी में जीवन गुजर गया. दुनिया में क्या हो रहा इसकी खबर भी नहीं रखी. कंप्यूटर आया, नेट आया. प्रोजेक्ट रिपोर्ट और आज युग के प्रासंगिक विषय भी आये किन्तु इनकी और ध्यान देने की कभी फुर्सत ही नहीं मिली. उसका नुकसान आज देखने को मिल रहा है. लोग पूछते है क्या आप टेली जानते है ? आपको एक्सेल पर काम करना आता है? क्या नेट सर्फिंग कर सकते है? कम्प्यूटर पर काम कर सकते है. हमारा उत्तर नहीं में होता है. समय को काटने के लिए कोई अपने संस्था में घुसने भी नहीं देता. हम इस युग की जरुरत के हिसाब से अपने आपको अपडेट रखते तो शायद आज हम भी आज के युवा जैसे व्यस्त होते. जानता हूँ कि वृद्धो को वेतन कम देते है. किन्तु यह समस्या नहीं है समस्या समय कैसे बीते यह है. कुछ लोग आज के तंत्र के उपयोग को सीख रहे वही कुछ लोग बदनसीबी पर रो कर जीवन को काट रहे है. यह अनेको के लिए सत्य हो सकता है.

देर ही अंधेर का कारण है. ------------------------------


श्रीमती इंदिरा गांधी ने यह नारा आपात काल १९७५-७६ में दिया था. यह घटना आज से 39 साल पहले की है. उस समय टीवी का तो क्या कम्प्यूटर का युग भी शुरू नहीं हुआ था लेकिन आपात काल में किसी भी कार्य के लिए देरी नहीं होती थी. सब कर्मचारी अधिकारी एक निश्चित समय पर आफिस आते थे. सारे अधिकारी और कर्मचारी आपातकाल से भयभीत थे. कोई ऐसा काम करने की हिम्मत भी नहीं जुटाता जो उसे मीसा बंदी बना लेता यही कारण था कि देश की जनता के काम सही समय पर होते थे. कुलमिलाकर जनता के लिए मेरे अनुसार एक स्वर्णिम युग था. आपातकाल के बाद अन्य सरकारे आयी उन्होंने महंगाई तो कम की थी किन्तु देश में अनुशासन लाने के लिए कोई कारवाई अब तक नहीं हुयी . आज देश को एक अच्छा नेता नहीं कोमल तानाशाह की जरुरत है, मोदी जी ने यह कवायत शुरू की मंत्रियो की नकेल अपने हाथ में रखी नौकर शाह को सबक सिखाने की कसरत भी की. उनके इस कार्य से देश के बड़े बड़े लोगो ने इसका विरोध शुरू कर दिया. वे लोकतंत्र में एक कोमल तानाशाह को पसंद नहीं करते इसीकारण जो परिणाम दिखने चाहिए वे नहीं दिख रहे है. देश इसको भुगत रहा है राजनेता तो जेल में तो क्या बहार भी सुखी रहते है. उन्हें एक किनारे लगाने का व्यायाम भी मोदी ने किया. सारी बीजेपी ने एक जुट होकर मोदी और अमित शाह का विरोध शुरू कर दिया. वे यह नहीं जानते कि देश की दिल्ली में आम आदमी पार्टी एक माफ़ी और मुफ्तखोरी के कारण जीत मिली . दिल्ली के लोगो ने केजरीवाल की ताकत और काम करने की क्षमता का आंकलन करने की ठानी है. समय बताएगा कि दिल्ली की जनता कहा तक ठीक थी? किन्तु देश को एक कोमल तानाशाह की जरुरत है. परसों दैनिक भास्कर में प्रीतिश नंदी ने लिखा कि प्रधान मंत्री के पद पर पहुचकर वे सब आकर्षित व्यक्ति अपना आकर्षण खो देते है.यह बनावटी आकर्षण है. मोदी जी को मै इस प्रकार का आकर्षित व्यक्ति नहीं मानता. वे मन से आकर्षित है और कार्य को पराकाष्टा तक ले जाना जानते है. वे चापलूसों और लाल बती के आकर्षण बहुत दूर है. ऐसा व्यक्ति अपना आकर्षण कैसे खो सकता है. मोदी को काम करने की बीजेपी और संघ छुट दे तभी मोदी जी नंदी के विचारो को ख़ारिज कर सकेगा . देश का यही दुर्भाग्य है कि कही अन्ना अपना रौब दिखाते है तो कभी बीजेपी और संघ मोदी को अपने विचारो पर नचाना चाहते है. अटल जी के साथ हुए यही कारनामे को मोदी हजम नहीं करेंगे. वे अपने स्वभाव के अनुसार काम करेंगे. मुख्य मंत्रियो को अपने एजेंडे के अनुसार काम करने को मजबूर करेंगे. सबका साथ और सबका विकास के मार्ग पर सतत कार्य करते रहेंगे. वे जानते है कि हर प्रदेश को जीतने की जिम्मेदारी जनता ने उन्हें नहीं दी है. देश को एक दिशा और जनता को राहत देने के लिए उन्हें इस पद तक भेजा है.
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श्रीमती इंदिरा गांधी ने यह नारा आपात काल १९७५-७६ में दिया था. यह घटना आज से 39 साल पहले की है. उस समय टीवी का तो क्या कम्प्यूटर का युग भी शुरू नहीं हुआ था लेकिन आपात काल में किसी भी कार्य के लिए देरी नहीं होती थी. सब कर्मचारी अधिकारी एक निश्चित समय पर आफिस आते थे. सारे अधिकारी और कर्मचारी आपातकाल से भयभीत थे. कोई ऐसा काम करने की हिम्मत भी नहीं जुटाता जो उसे मीसा बंदी बना लेता यही कारण था कि देश की जनता के काम सही समय पर होते थे. कुलमिलाकर जनता के लिए मेरे अनुसार एक स्वर्णिम युग था. आपातकाल के बाद अन्य सरकारे आयी उन्होंने महंगाई तो कम की थी किन्तु देश में अनुशासन लाने के लिए कोई कारवाई अब तक नहीं हुयी . आज देश को एक अच्छा नेता नहीं कोमल तानाशाह की जरुरत है, मोदी जी ने यह कवायत शुरू की मंत्रियो की नकेल अपने हाथ में रखी नौकर शाह को सबक सिखाने की कसरत भी की. उनके इस कार्य से देश के बड़े बड़े लोगो ने इसका विरोध शुरू कर दिया. वे लोकतंत्र में एक कोमल तानाशाह को पसंद नहीं करते इसीकारण जो परिणाम दिखने चाहिए वे नहीं दिख रहे है. देश इसको भुगत रहा है राजनेता तो जेल में तो क्या बहार भी सुखी रहते है. उन्हें एक किनारे लगाने का व्यायाम भी मोदी ने किया. सारी बीजेपी ने एक जुट होकर मोदी और अमित शाह का विरोध शुरू कर दिया. वे यह नहीं जानते कि देश की दिल्ली में आम आदमी पार्टी एक माफ़ी और मुफ्तखोरी के कारण जीत मिली . दिल्ली के लोगो ने केजरीवाल की ताकत और काम करने की क्षमता का आंकलन करने की ठानी है. समय बताएगा कि दिल्ली की जनता कहा तक ठीक थी? किन्तु देश को एक कोमल तानाशाह की जरुरत है. परसों दैनिक भास्कर में प्रीतिश नंदी ने लिखा कि प्रधान मंत्री के पद पर पहुचकर वे सब आकर्षित व्यक्ति अपना आकर्षण खो देते है.यह बनावटी आकर्षण है. मोदी जी को मै इस प्रकार का आकर्षित व्यक्ति नहीं मानता. वे मन से आकर्षित है और कार्य को पराकाष्टा तक ले जाना जानते है. वे चापलूसों और लाल बती के आकर्षण बहुत दूर है. ऐसा व्यक्ति अपना आकर्षण कैसे खो सकता है. मोदी को काम करने की बीजेपी और संघ छुट दे तभी मोदी जी नंदी के विचारो को ख़ारिज कर सकेगा . देश का यही दुर्भाग्य है कि कही अन्ना अपना रौब दिखाते है तो कभी बीजेपी और संघ मोदी को अपने विचारो पर नचाना चाहते है. अटल जी के साथ हुए यही कारनामे को मोदी हजम नहीं करेंगे. वे अपने स्वभाव के अनुसार काम करेंगे. मुख्य मंत्रियो को अपने एजेंडे के अनुसार काम करने को मजबूर करेंगे. सबका साथ और सबका विकास के मार्ग पर सतत कार्य करते रहेंगे. वे जानते है कि हर प्रदेश को जीतने की जिम्मेदारी जनता ने उन्हें नहीं दी है. देश को एक दिशा और जनता को राहत देने के लिए उन्हें इस पद तक भेजा है.