Thursday 11 September 2014

अंतर नहीं है -----------

छोटे बच्चों और बुजुर्गो में काफी बड़ा अंतर नहीं है ,एक उतरार्ध जीवन से नवजीवन में आने को आतुर है वही नवजीवन धीरे धीरे उतरार्ध जीवन की और जाने को तत्पर है. दोनों में एक ही ललक है. दोनों अपनी बात अपने अपने तरीके से मनवाना जानते है. दोनों के अंग एक हद तक ही साथ देते है. दोनों को सहारे की जरुरत है. एक बोल सकता है दूसरा बिन बोले ही अपनी बात कह सकता है. दोनों नेचुरल काल्स को नहीं जानते. फिर भी दोनों में अंतर किया जाता है? इसका कारण भी है एक ने दुनिया देखी है जबकि दूसरा दुनिया को देखने की तैयारी कर रही है. यही कारण है कि हम बुजुर्गो को उपेक्षित कर रहे है वही दूसरे को गले से लगा रहे है ताकि ये छोटे बच्चे दुनिया देख सके. दोनों का संघर्ष एक जैसा ही होने के कारण इन दोनों में अंतर की जरुरत नहीं है ?

Tuesday 9 September 2014

पित्रपक्ष :- बेटो की गलतियों को मा बाप कभी गंभीरता से नहीं लेते।

आज फेस बुक पर पढ़ा कि जिन बेटो ने अपने माँ बाप को उनके जीवन काल में कभी सुख नहीं दिया हो वे श्राध कर क्यों दिखावा कर रहे है? मेरे विचार से लेखक ने यह पोस्ट लिखने से पहले माँ बाप की भावनाओ का विचार नहीं किया ? बेटा उन पर कितने भी जुल्म करे कभी बददुआ नहीं देते है उनके इस कृत्य को बचपना कहकर हमेशा माफ़ करते है। बेटो का यह जुल्म कुछ समय तक इनके दिलोदिमाग पर होता है बाद में उसी बेटे को अपना लाडला मानते है. माँ बाप पर ज्यादती के लिए सरकारी कानून बनने के बाद इस कानून का उपयोग अधिकांश माँ बाप ने नहीं किया है. यह भी समझे कि बेटे की जिम्मेदारी अपने बेटो में बट जाने के कारन माँ बाप पर गुस्सा निकालता हो, माँ बाप के अलावा उसके पास गुस्सा जाहिर करने के लिए है भी कोन? वह यह जानता है कि माँ बाप माफ़ कर देंगे किन्तु आज कल की पत्नियों पर उसका यह विश्वास नहीं है. माँ बाप पर अत्याचार विचारो की भिन्नता और सम्पति के कारन हो सकते है. माँ बाप जब बेटे पर आश्रित है तब उन्होंने अपने विचारो को विराम देना चाहिए और बेटे के विचारो को गीता मानकर उस पर अमल करना चाहिए इससे विचारो का टकराव बचेगा? रही सम्पति की बात तो वह बेटा देख ही रहा है ? पूर्ण स्वामित्व नहीं मिलने का मलाल हो सकता है ? जीवन के संग्राम ये बहुत छोटी बाते है. अन्त्य क्रिया और श्राद्ध करना बेटो का शास्त्रो द्वारा दिया गया अधिकार है. यह भी माने के बेटे ने जीवन भर माँ बाप को दुःख दिया तब दिए गए दुखो का प्रायःचित वह श्राद्ध कर क्या नहीं कर सकता? माँ बाप को वेदना दे कर एक गलती तो की तब उनकी मुक्ति के लिए श्राद्ध नहीं करना उसकी दूसरी गलती नहीं होगी ? मेरे विचार से माँ बाप के जीवन काल में बेटे जो भी गलती हुयी हो उसके लिए क्षमा मांगते हुए उनका श्राद्ध निश्चित करना चाहिए इससे पुरखे प्रसन्न ही होंगे और आपका हमेशा मंगल हो यही आशीर्वाद देंगे। Like

Monday 1 September 2014

स्वतंत्रता सबको भांति है. *************************

स्वतंत्रता सबको भांति है.
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हर व्यक्ति को स्वतंत्रता भांति है. पशु हो या पक्षी स्वतंत्रता चाहते है. भले ही लालमणि को सोने के पिंजरे में कैद कर दो और लाल मिर्ची खिलाओ वह अच्छा बोलेगा. आप जैसा सिखायोगे वही सीखेगा. रामायण सिखायोगे रामायण सीखेगा. उसके पास कोई विकल्प नहीं ? विकल्प मिलते ही वह उड़ जायेगा और सब भूल जायेगा और अपने मित्रों की बोली ही बोलेगा जो उसके साथी बोलते है? कुते को आप कैद कर लो आपकी बोली सीख जायेगा जैसा बोलोगे वैसा ही करेगा ? जमीन पर सोने वाला यह केतु फोम की गद्दी पर सोयेगा? सोने की चैन पहनाओगे पहनेगा इसके सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं है ? किन्तु एक बात सत्य है कि जब भी उसे मौका मिलेगा वह भाग कर अपनी जमात में घुल मिल जायेगा ? सार यह है कि स्वतंत्रता सबको अच्छी लगती है ? हम इनको कैद कर जैसा चाहो मना लेंगे किन्तु ये दिल से कभी स्वीकार नहीं करेंगे? अपने संस्कार के अनुसार ही ये बर्ताव करेंगे. इसमें कोई शक सुबह नहीं होनी चाहिए ? पत्नी बेटो को भी स्वतंत्रता का मोह है ? इसीलिए वानप्रस्थ का मार्ग अपनाने का हमारे ग्रंथो में उल्लेख है ? न हम स्वतंत्र रहते है न दूसरे को इस स्वतंत्रता का लाभ लेने देते है. मोह माया के जाल में फंसे है. न खुद मोक्ष में जाने को तैयार है और नाही दूसरे को जाने दे रहे है. अजीब मोहमाया है कैद में रहते है जैसा कहो करते है फिर भी मुक्ति का मार्ग नहीं खोज रहे है ? इसे ही मनुष्य जीवन कहते है जबकी पशु पक्षी मौका मिलते ही सब छोड़ जाते है ? ये हमेशा कैद से निकलने की हमें शिक्षा देते है. सारी सुख सुविधा को ये त्याग कर हमारे लिए उदाहरण बन जाते है .

Saturday 30 August 2014

अहम ब्रह्मास्मि ----------------

अहम ब्रह्मास्मि
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हम बहुत पढ़े लिखे है ,जानकार है, विभिन्न क्षेत्रो का अनुभव हमारे पास है. इस कारन जो भी दूसरा व्यक्ति हमने से बात करता है हमारी योग्यता के सामने हम उसे बौना मानते है और उससे जो व्यवहार करते है उसके कारण वह दुखी हो जाता है. हम एक विषय दो विषय अधिक से अधिक चार पांच विषयो के ज्ञाता हो सकते है. हर काम में कोई व्यक्ति माहिर नहीं है.  अनेक व्यक्ति अनेक  काम करते है वे उनके कामो के विशेषज्ञ होते है.संक्षेप में हर व्यक्ति का ज्ञान कही न कही समाज के लिए उपयोगी होता है. हम इस बात को भूल जाते है और इसीलिए किसी भी व्यक्ति के साथ  हम  अशोभनीय व्यवहार कर बैठते है. किसी के साथ अच्छा व्यवहार  हमारी योग्यता काआईना है. छोटे से छोटे आदमी से हमारा व्यवहार शालीन होना चाहिए भले ही हम कितने बड़े पद पर क्यों न हो. पद तो चंचल है किन्तु व्यवहार सदा याद रहता है. मुझे इस सन्दर्भ में एक किस्सा याद आ रहा है. एक पंडित जी को अपने ज्ञान का बेहद अहंकार था उन्हें नदी पार करनी थी वे एक नौका में बैठ गए. नाविक उन्हें नदी पार कराने लगा, इस बीच पंडित जी ने नाविक से पूछा नाविक तुमने गीता पढ़ी नाविक ने कहा नहीं,  पंडित जी उससे कहा तुम्हारा २५ प्रतिशत जीवन व्यर्थ गया ? नाविक को बुरा लगा. पंडित जी ने नाविक से पूछा तुमने रामायण पढ़ी है उसने कहा पंडित जी नहीं पढ़ी पंडित ने कहा तुम्हारा २५ % जीवन बेकार हो गया, नाविक ग्लानि से भर गया. पंडित जी कहा नाविक तुमने महाभारत सुनी नाविक का उत्तर नहीं में था पंडित जी ने कहा नाविक तुमने इस बहुमूल्य जीवन का ३/४ भाग का कोई उपयोग नहीं किया और यह जीवन प्रभु के काम नहीं आ सका ।  नाविक को लगा की पंडित जी सही कह रहे है ? पंडित जी ने फिर पूछा नाविक  क्या तुमने ईश्वर की कभी पूजा नाविक ने कहा मै पेट और परिवार की चिंता करू या भगवान को पुजू ? पंडित जी ने कहा नाविक मरने के बाद तुम् भगवान को क्या जवाब दोगे ? नाविक ने कहा भगवान को जो जवाब देना है दे दूंगा, नाविक ने जल्दी से एक बात बता दीजिये आपको तैरना आता है. पंडित जी ने कहा नहीं तब नाविक ने कहा आगे तूफान आरहा है मै तो नाव से कूदकर अपनी जान बचा लूंगा आप अपनी जान की फ़िक्र करो ऐसा कहकर नाविक नाव से कूदकर नदी के उस पार चला गया वही पण्डित जी तूफान में फसकर अपनी जान गवा बैठे? यह घटना शिक्षा देती है की हमें हर व्यक्ति के गुणों की कदर करनी चाहिए चाहे वह कितना भी छोटा काम क्यों न कर रहा हो. प्रेम और सदाचरण व्यक्ति  कभी नहीं भूलता है. 

Saturday 23 August 2014

संगत

अनेक लोगो से सुना संगत का असर जीवन बदल देता है. अच्छी संगत आदमी को बड़ा बनाती है वही बुरी संगत आदमी को बुरा बना देती है. मैंने ऐसे व्यक्तियों को देखा जो शराबी के साथ तो रहते है किन्तु उन्होंने आज तक शराब को नहीं छुआ. जुवारी के साथ रहने वाले ने जुआ नहीं खेला . रेल में चाय बेचने वाले की दोस्ती कुली कबाड़ियों और कुछ गिनती के अच्छे लोगो के साथ होती है? फिर भी इन सब के रहते हुए मोदी ने अपनी मंजिल पाकर ही दम लिया। सुदामा और कृष्ण का साथ कही दिनों तक रहा इसके बाद भी सुदामा दरिद्र ही रहे. कर्ण कौरवो के साथ रहा फिर भी उसके पुरुषार्थ को लोग आज भी नमन करते है. मराठी के साहित्यकार शिवाजी सावंत का कर्ण पर लिखे म्रयतंजय में आज भी कर्ण की महानता को पढ़ते है. इस पुस्तक को पढ़ने से लगता है महाभारत का हीरो केवल कर्ण ही है. रावण का भाई विभीषण में रावण के एक भी गुण नहीं थे जबकि कैकयी अपने स्वभाव को नहीं बदल पायी ? वास्तव में व्यक्ति देवीय गुणों के कारन महान और नीच बनता है. सोना कही भी पड़ा रहे सोना ही रहता है जबकि सांप दूध पीकर भी जहर उगलता है. ईश्वर ने किस्मत में जो लिखा वही होता है चाहे आप संगत किसी की भी करे. अपवाद हर जगह होते है.

Sunday 10 August 2014

संत कर्म ----------

संत कर्म 
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जीवन को जीने के लिए सभी अपनी अपनी अपनी हैसियत के अनुसार कर्म करते है. कुछ लोग कर्म करके उसे बेच देते है. इसके बदले उन्हें वेतन और पेंशन मिलती है जबकि कुछ लोग परोपकार या दूसरों की सेवा के लिए कर्म करते है उन्हें इन कर्मो का प्रतिफल हर महीने तो नहीं मिलता परन्तु किसी न किसी रूप में जरुर मिलता है. वे सुखी होते है.और जीवन से संतुष्ट होते है. अब प्रश्न यह है कि यदि कर्मो का फल हर महीने न लिया जाए तब परिवार कैसे चलाएंगे ? इन कर्मो के साथ परोपकार के लिए भी कर्म किये जाए तब इन कर्मो का प्रतिफल संचित होते होते एक मुश्त फल प्राप्त किया जा सकता है. गृहस्थ के लिए किसी को अपने कर्मो से दुखी न करना, किसी का भला हो सके तो करना यही परोपकारी कर्म है. जो बिना फल लिए कर्म करते है वे संतो की श्रेणी में आते है. इन संतो को सादर नमन और कुछ न कुछ परोपकारी कर्म करने वाले गृहस्थों को नमन.

Thursday 7 August 2014

भ्रष्टाचार --------

भ्रष्टाचार
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घर हो या बहार सब और भागम भाग मची है. ये सब आर्थिक रूप से सम्पन बनने की कवायद है. यह भी सच है कि बिना आर्थिकता के परिवार,मित्र और रिश्तेदार भी नहीं जानते? .यह आर्थिक युग है. रिश्ते भी आर्थिक तराजू में तौले जा रहे है. माँ बाप के आर्थिक स्तर के आधार पर ही परिवार में उनका आंकलन हो रहा है. जहा भी जाए आर्थिक स्तर ही देखा जा रहा है . इसीकारण जो लोग अपने कर्तव्य से उतना नहीं कमा पाते है जिससे उन्हें समाज में एक मुकाम मिल सके, अन्य रास्ता अपनाते है. यही से भ्रष्टाचार का उदगम होता. अनेक लोग बेचारी को गंगोत्री को इसके लिए जवाब दार मानते है.गंगोत्री तो एक बहाना है. भ्रष्टाचार तो हर घर से शुरू होता है. भ्रष्टाचार एक व्यापक रूप लिए है. जिसे जो काम सौपा गयाऔर नहीं किया,बेटे ने अपनी पढाई नहीं की, गृहणी ने अपने काम को डंडी मार दी और अफसर ने अपने ईमानदार होने की दुहाई दी और दफ्तर के लोगो से अपने काम करवा रहा है, यही भ्रष्टाचार है. यह जब तक हमारे घर से दूर नहीं होगा कोई भी सरकार इसे खतम नहीं कर सकती.

Wednesday 6 August 2014

आदरणीय महोदय।

देश में वरिष्ठ नागरिको का प्रतिशत प्रतिदिन बढ़ रहा है. जैसे जैसे इनकी संख्या बढ़ रही है वैसे वैसे इनकी समस्या भी बढ़ रही. बेटे विदेशो में काम कर रहे है. वही माँ बाप बुजुर्ग होने से अपना एकाँकी जीवन काट रहे है. उन्हें यदि रात को कोई तकलीफ हो रही हो तब आज की स्थिति में इसका निदान संभव नहीं है ? कुछ NGO ने इनके लिए केयर सेंटर खोले है किन्तु ये केवल नाम के है. न इनके टेलीफोन सुने जाते है और ना ही इनके कष्ट को कोई सुनने आता है. संक्षेप में आज के बुजुर्ग सुखी नहीं है. इन बुजुर्गो ने देश को कभी न कभी कुछ तो दिया ही है. इनकी देखभाल करना सामाजिक और राजनैतिक दायित्व भी है. आज ये बुजुर्ग या तो इतिहास बन गए है या आशीर्वाद देने के काम आ रहे है. कही काम मांगने जाने पर इन्हे उपेक्षित भाव से देखा जाता है. इसीकारण अधिकांश बुजुर्ग काम करने से परहेज कर रहे है. घर में बैठे बैठे खालीपन इनकी उम्र को कम कर रहा है. शाम और सुबह केवल टहलना इनके भाग्य में लिखा है. आज इन बुजुर्गो की सेहत के लिए चिकित्सा एक महत्वपूर्ण कार्य है. हर शहर में निजी डाक्टरों की भरमार है. इन चिकित्सको को वरिष्ट जनों के चिकित्सा का काम सोपा जा सकता है. यह काम ये मुफ्त में करे यह अपेक्षा नहीं है वे इनके इलाज में रियायत दे सकते है और विभीन्न परीक्षणों के शुल्क में कटौती कर सकते है. इनकी आमदनी सीमित होने के अतिरिक्त महंगाई के युग में यह पर्याप्त नहीं है. बुजुर्गो का कर्जा किसी एक वर्ग विशेष पर न होकर पुरे समाज पर है. डाक्टर भी समाज के एक अंग है. इस कारन इनकी चिकित्सा में छूट देकर अपना समाजिक कर्तव्य ही कर रहे है. दवा विक्रेता भी उन्हें दवा खरीदने पर छूट दे सकते है. सरकार की भागीदारी से यह कार्य आसान हो सकता है. आशा है आप सब डाक्टरों को इस कार्य के लिए राजी करने में सहयोग करे. आप मुझसे इस पुनीत कार्य के लिए जुड़ना चाहते है, कृपया नाम के मोबाइल नंबर से मुझे अवगत कराये

Thursday 31 July 2014

यह अजीब बात *************


यह अजीब बात
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  यह अजीब बात है कि जिस व्यक्ति को सरकार सेवा निवृत मान लेती है. समाज भी इन्हें वैसा ही देखता है.इस कारण इन बुजर्गो को कही भी धरातल नहीं मिलता. जिसने दुसरो को धरातल दिया हो वही आज अपने खड़े होने के धरातल खोज रहा है. हमारे देश में लगभग 35% लोग आज धरातल की पहिचान अपने लिए चिन्हित करने में लगा है. सरकार ने तो मान लिया अब ये बुजुर्ग किसी काम के नहीं है. समाज और परिवार भी इन्हें साथ नहीं दे रहा है. इस कारण देश का बुजुर्ग आज उत्साहित नहीं है. कही न कही इसमें अवसाद आगया है. यही अवसाद इन्हें धरती का बोझ बना रही है. इनके पास अनुभव है. कड़ी मेहनत कर बाल सफ़ेद किये है. ऐसे बुजर्गो को समाज और परिवार एक बार नयी उर्जा भर दे. देखिये हमारी सम्पदा क्या कर गुजरती है. विदेशो में इन्हें प्रोत्साहन मिलता है.आदर मिलता है कोई काम करने की इच्छा हो काम भी मिलता है. दुःख इस बात का है कि सरकार इनसे आशीर्वाद लेने का काम कर रही है. क्या देश के योगदान में 70 वर्ष का बुढा जो जींस और वाकिंग शू पहनकर जोगिंग करने में अपनी उर्जा खर्च कर रहा है क्या इनकी यह उर्जा किसी काम नहीं आसकती? फेस बुक पर बड़े बड़े विद्वान अपनी विद्वता से अनेको लोगो को प्रभावित कर रहे सरकार इनके अनुभव और ज्ञान को अपने लिए काम में नहीं ला सकती है ?

Tuesday 29 July 2014

लाल गाल

लाल गाल 
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आप क्या सोचते कि सरकार के सब नेता अकलमंद होते है. कुछ पार्टी में वरिष्ट होते है. जिनके सावन इसी पार्टी में बीते है वे सार्वजानिक रूप से बयान देना जानते है.कैसे तोल के बोला जाए वे सोच समझ कर बोलते है ? किन्तु अधकचरे नेता कुछ भी बयान देकर अपनी पीठ खुद थपथपाते है. वे जानते कि सरकार हमारी है कुछ भी बोल दो सम्हाल लेगी. इनका ये वहम है, अपने बातो का हिसाब इन्हें यहाँ खुद ही देना पड़ता है. सरकार और संघठन तुरंत हाथ खीच लेता है. लाल गाल वाले ही टमाटर खाते है वाला कथन कुछ समझ में नहीं आया.यह जरुरी नहीं कि सुंदरता पर धनवानों का ही कब्ज़ा है. लाल गाल गरीब के भी हो सकते है. टमाटर की सब्जी और रोटी ही इनका भोजन है. टमाटर के महंगे होने के लिए ये लाल गाल को उतरदायी मानते है. इस घटिया सोच को कौन मानेगा ? केवल मानसिक दुर्बलता के कारण ही ये ऐसा बयान दे रहे है.टमाटर को क्या सरकार कम किमंत पर नहीं बेच सकती ? ये गरीबो की चटनी है. क्यों सरकार अपनी जनता को लूटने दे रही है. मत भूलो आपकी आवाज सता के कारण आ रही है. संघ के स्वयं सेवको ने हमारे समय में टमाटर की चटनी और मांग कर खायी रोटी से ही बीजेपी को यह दिन दिखाए है. किसी को भी इनकी तपस्या पर टीका टिपण्णी का अधिकार नहीं है ?

Sunday 20 July 2014

जनता त्रस्त हो चुकी है ******************

जनता त्रस्त हो चुकी है
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जिन्हें हम चुनकर भेजते है. इस स्थिति में आने के लिएइन्हें दर दर की ठोकरे वोट के लिए खाते है वे इस पोजीशन पर पहुच कर VIP क्यों बन जाते है? लाल बती के गाड़ी से आते है क्या वे उन पर रौब जमाना चाहते है जिन्होंने उन्हें इस पोस्ट पर उन्हें भेजा है ? नौकर मालिक बन गया और वोट देने वाला उसके सामने हाथ जोड़कर अपनी समस्या के सलुशन के लिए भीख मांग रहा है ?. साथ में दो चार सुरक्षा कर्मी भी होते है जो यह डर पैदा करते है कि इनके पास कोई ना जाए . मुझे यह समझ में नहीं आता कि वोट मांगते समय इन्हें क्यों सुरक्षा की जरुरत नहीं होती और अचानक इन्हें सुरक्षा कर्मीक्यों दे दिए जाते है. यह आज तक समझ में नहीं आया. चुना गया हमारा प्रतिनिधि आज हमसे अलग क्यों हो गया कृत्रिम हस्सी चेहरे पर होती है , कोई खास मिला तो उसके पीठ पर इस हास्य मुद्रा के साथ हाथ फेरकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते है. उससे कोई अपनत्व की बात नहीं ? यह कार्यकर्ता अब अगले चुनाव की प्रतीक्षा करता है ? फिर वही पार्टी के नाम पर काम करता है. जनता अब इनसे दूर हो गयी. यही कारण है कि रोज जो कुछ तो अघटित घटता है उसके पीछे यही रौबदार व्यक्तित्व है . क्या इस मंत्री का गुप्तचर विभाग सो रहा है. असुरक्षा की भावना इनमे क्यों आ गयी ? दुश्मन तो सबके होते है हाँ यह बात सच है कि जो जितना बड़ा होता है उसके दुश्मन भी जादा होते है. लेकिन यह भी सच है कि इनके पास संसाधन भी एक आम आदमी जादा अधिक होते है ? फिर क्यों इन्हें जनता से दूर करे वाली सुरक्षा दी जान आज की जरुरत है ? मंत्री या विधायक सबसे पहले दूध देने वाली गाय को क्यों खोजता है ? क्यों चंदे की मांग करता है ? क्या यह दादागिरी का टेक्स नहीं मान सकते ? अफसर इनके अधिकारों का उपयोग करता है वही अफसर जनता को कनफूजन में रखता है. मंत्री अपने अधिकारों का प्रयोग करने से क्यों डरता है ? यदि वास्तव में अच्छे दिन लाने है तब इन्हें जनता बनाना पड़ेगा. कोई VIP कल्चर अब नहीं चलेगा क्युकी ये जनता के नौकर है और राज्य की संचित निधि से एक आम नौकर के समान वेतन लेते है. इनके साथ वही व्यवहार होना चाहिए जो एक नौकर के साथ होता है. मोदी जी ने उनके काफिले के साथ ट्राफिक सिग्नल में आम जनता के सामान वेट करते है. तब प्रदेश के मंत्री और मुखिया एक खास और रुतबेदार दर्जे की क्या जरुरत है ? मंत्री बनने के बाद जनता के दुःख दूर क्यों नहीं करते, जनता से मिलने का समय इनके पास क्यों नहीं है ? जब भी जनता चाहे इनसे क्यों नहीं मिल सकती, क्या जनता के मिलने के समय सोना जरुरी है या उदघाटन करना जरुरी है. जनता अब त्रस्त हो चुकी है.


श्रम दान -----------


श्रम दान, नेत्रदान रक्तदान और देहदान सबसे महत्वपूर्ण दान माने गए है. इन दानो से किसी न किसी का वास्तविक भला होता है. जबकि अन्य दान के उपयोग के बारे में भ्रम रहता है. ये दान तुरंत लाभ देते है. श्रम दान भी एक ऐसा ही दान है, इस दान में श्रम करने वाले की अनायास कसरत हो जाती है वही श्रम से किये कार्य से एक वर्ग विशेष लाभान्वित हो जाता है. श्रम से निकला पसीना वह खुशी देता जो कही भी खोजने से नहीं मिलती. आज से मैंने श्रम दान का कार्य शुरू किया. मेरा श्रम मेरी घर की क्षति ग्रस्त सड़क के मरम्मत के साथ आज सुबह शुरू हुआ. एक घंटे तक सड़क के एक छोटे हिस्से को इटो और पथ्थरो से भरा. अभी काफी काम बाकी है. सुबह एक घंटा इस कार्य के लिए देने का संकल्प लिया. सडक के गड्डो को भरने के बाद गाजर घास की सफाई का कार्यक्रम है. मैंने यह भी सोचा कि रोज ४-५ किलोमीटर तेज चलने से अपना भला तो होता है जन सामान्य का कोई भला नहीं होता. श्रम दान से हम भी फिट रहते है और दूसरों को भी इसका फायदा भी मिल जाता है.हर बात के लिए सरकार के भरोसे बैठे रहने के बजाय इस दान से जन सेवा आज इसीलिए प्रासंगिक हो गयी है क्योकि नगर निगम बड़े कामो में व्यस्त है. छोटे छोटे कामो के उसके पास समय नहीं. इस कारन छोटी मोटी समस्या बड़ी हो जाती है और हमें परेशानी हो सकती है. आज दो तीन वृक्ष लगाने का भी कार्यक्रम है.अभी मै अकेला ही यह कार्य कर रहा हूँ.


Saturday 19 July 2014

दुःख मुक्त जगला का रे कुणी जीवनात *************************************


आज मैंने फेसबुक पर मै कब मरूंगा और कैसे मरूंगा शेयर किया. यह मैंने नेट की एक साईट से खोजा है. अनेक मित्रों ने कहा आप १०० साल जियोगे ? कुछ ने कहा ऐसा नहीं होगा ? मैंने अपने उतर में यही कहा कि यह सब हमारे हाथ में नहीं है. जिस दिन हम जन्म लेते है उसी दिन हमारे इस दुनिया से जाने की तारीख और समय भी तय हो जाता है. मै इस घटना को सामान्य और अटल मानता हूँ, किन्तु ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि जिस दिन ले जाओगे कर्म करते ले जाना. बिस्तर से मत उठाना. किन्तु एक बात मुझे आश्चर्य जनक लगी कि मेरे दो मित्रों ने मुझसे  पूछा कि  हमारे बारे में बताओ कि हम कब और कैसे मरेंगे. इनमे से एक मित्र २४-२५ साल का है. इससे मुझे लगा की लोगो की जीने की  चाहत कम हो रही है. इसके पीछे कारणों पर अनुसन्धान जरुरी है. साथ में मैंने यह भी अनुभव किया कि लोग मृत्यु को अटल मानकर इसे सामान्य घटना के रूप में देख रहे है. अब मरने का भय शायद धीरे धीरे कम होते जा रहा है. आने वाले दिनों में परिवार के अन्य सदस्य भी इसे असामान्य नहीं मानेंगे. शोक नहीं के बराबर होगा. अनेक वर्ष पूर्व लिखा गया मराठी के गीत रामायण की यह पंक्तिया सच के साथ सामने आएगी " जन्म मरण या तुण सुटला कोण प्राणी जात, दुःख मुक्त जगला का रे कुणी जीवनात" 
सरस्वती 
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हमारे पूर्वज कहते है कि २४ घंटे में एक बार कुछ समय के लिये सरस्वती प्रकट होती है. इस स्थिति में आप जो बोलेंगे वही सच होता है. यह बात सत्य है तब व्यक्ति को कभी भी किसी के बारे बुरा नहीं कहना चाहिए हो सकता है सरस्वती उसी समय जिव्हा पर प्रकट हो जाए.

Friday 18 July 2014

जीवन लीला समय से पूर्व खतम करते है . 
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एक बच्चा जो दो तीन साल का हो लोग अंदाज के साथ उसकी उम्र का सही आंकलन कर लेते है ? जवान आदमी को देखकर ही बता देते है कि यह तो अनोखा इंसान है किन्तु बुजुर्गो के साथ यह बात लागू नहीं होती उन्हें एकदम बच्चे या जवान अंकल कह देते है. हो सकता है उनका प्रभा मंडल उन्हें यह संबोधन के लिये प्रेरित करता हो. उम्र केवल एक आंकड़ा है जो सबके लिये एक साथ बढ़ता है. किसी के साथ भेदभाव नहीं करता. किन्तु समय एक ऐसा उपकरण है जो सबको अपनी जिदंगी जीने का अवसर देता है. कुछ लोग इसका पूरा उपयोग करते है और कुछ लोग सोने का चमच ले कर पैदा होते है और उसीके साथ जाते है. जीवन में काले बाल कैसे सफ़ेद किये जाते है इसके लिये वे अनुभव शून्य होते है. जानवर के जीवन से भी इनका जीवन बदतर होता है. जानवर तो अपने पेट के खातिर इधर उधर घूमता है किन्तु इन लोगो के जीवन में यह भी घटित नहीं होता ? कुछ नया करने के आगे कदम बढ़ाना इनके लिये ईश्वर ने नहीं लिखा है. किन्तु जो सतत संघर्ष के बाद उम्र का आकड़ा पार करते है वे किसी ना किसी तरीके से लोगो के लिये अनायास आकर्षण का केन्द्र बन जाते है.ऐसे बुजुर्ग ही आगे भी कुछ नया करते है. कुछ ना हो तो कोई भी काम करने लग जाते है. वे जानते है कि काम के साथ कुछ श्रम होगा और कुछ आमदनी भी होगी. श्रम और आमदनी समानुपातिक है. अनेक लोगो को कहते सुना अब क्या काम करेंगे ऐसे लोग भूतकाल में किये गये काम को ही श्रम मानते है अब वे कुछ नहीं करना चाह्ते यही लोग अपनी जीवन लीला समय से पूर्व खतम करते है .
गंभीर रिश्ता 
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पति और पत्नी का रिश्ता एक गंभीर रिश्ता है. जहा पति कमाने में व्यस्त रहता है वही पत्नी चूल्हे चौके और बच्चों को संस्कार देने में अपना समय व्यतीत करती है. घर में कोनसी वस्तु कहा रखी है? आये मेहमान का स्वागत कैसे करना है इसकी रणनीति वही बनाती है. कुल मिलकर यदि पत्नी ना हो तो घर घर नहीं होता और मेहमान भी कम ही आते है. बेटे और बेटिया अपना दुःख दर्द और आवश्यकता माँ को ही बताती है. माँ काल और परिस्थिति देखकर पति से उनकी परेशानी दूर कर देती है. पति को क्या पसंद है और बच्चे आज क्या खाएंगे इसकी कल्पना क़र भोजन में यह संतुलन रखने के लिए भी कसरत करती है. बेटो के बड़े हो जाने पर पति और बेटो के बीच सेतु का काम पत्नी ही करती है. जिन घरो में पत्नी नहीं होती उन घरो में बाप बेटो का संवाद कई महीनो तक नहीं होता। दोनों पढ़े लिखे और समझदार होने के कारन विचारो में भिन्नता होती है इसीलिए यदा कदा बोलचाल बंद होना स्वाभाविक है. एक दो दिन से ज्यादा यह नहीं चल पाता और फिर सामान्य हो जाता है. हमारे यहाँ बड़े बुजुर्ग कहते है कि कभी पति पत्नी के झगडे में किसी को भी नहीं पड़ना चाहिए। पत्नी का घर के प्रति समर्पण के बाद भी आज कल पति पत्नी के बीच जोक्स का चलन फेस बुक पर बढ़ता ही जा रहा है. यदि माँ हमारे लिए देवी है तब यह क्यों भूल जाते है कि पत्नी भी तो किसी की माँ है. अनुरोध है कि इस गंभीर रिश्ते को चीप न बनाये। हसने हँसाने के लिए और भी साहित्य है