भ्रष्टाचार
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घर हो या बहार सब और भागम भाग मची है. ये सब आर्थिक रूप से सम्पन बनने की कवायद है. यह भी सच है कि बिना आर्थिकता के परिवार,मित्र और रिश्तेदार भी नहीं जानते? .यह आर्थिक युग है. रिश्ते भी आर्थिक तराजू में तौले जा रहे है. माँ बाप के आर्थिक स्तर के आधार पर ही परिवार में उनका आंकलन हो रहा है. जहा भी जाए आर्थिक स्तर ही देखा जा रहा है . इसीकारण जो लोग अपने कर्तव्य से उतना नहीं कमा पाते है जिससे उन्हें समाज में एक मुकाम मिल सके, अन्य रास्ता अपनाते है. यही से भ्रष्टाचार का उदगम होता. अनेक लोग बेचारी को गंगोत्री को इसके लिए जवाब दार मानते है.गंगोत्री तो एक बहाना है. भ्रष्टाचार तो हर घर से शुरू होता है. भ्रष्टाचार एक व्यापक रूप लिए है. जिसे जो काम सौपा गयाऔर नहीं किया,बेटे ने अपनी पढाई नहीं की, गृहणी ने अपने काम को डंडी मार दी और अफसर ने अपने ईमानदार होने की दुहाई दी और दफ्तर के लोगो से अपने काम करवा रहा है, यही भ्रष्टाचार है. यह जब तक हमारे घर से दूर नहीं होगा कोई भी सरकार इसे खतम नहीं कर सकती.
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घर हो या बहार सब और भागम भाग मची है. ये सब आर्थिक रूप से सम्पन बनने की कवायद है. यह भी सच है कि बिना आर्थिकता के परिवार,मित्र और रिश्तेदार भी नहीं जानते? .यह आर्थिक युग है. रिश्ते भी आर्थिक तराजू में तौले जा रहे है. माँ बाप के आर्थिक स्तर के आधार पर ही परिवार में उनका आंकलन हो रहा है. जहा भी जाए आर्थिक स्तर ही देखा जा रहा है . इसीकारण जो लोग अपने कर्तव्य से उतना नहीं कमा पाते है जिससे उन्हें समाज में एक मुकाम मिल सके, अन्य रास्ता अपनाते है. यही से भ्रष्टाचार का उदगम होता. अनेक लोग बेचारी को गंगोत्री को इसके लिए जवाब दार मानते है.गंगोत्री तो एक बहाना है. भ्रष्टाचार तो हर घर से शुरू होता है. भ्रष्टाचार एक व्यापक रूप लिए है. जिसे जो काम सौपा गयाऔर नहीं किया,बेटे ने अपनी पढाई नहीं की, गृहणी ने अपने काम को डंडी मार दी और अफसर ने अपने ईमानदार होने की दुहाई दी और दफ्तर के लोगो से अपने काम करवा रहा है, यही भ्रष्टाचार है. यह जब तक हमारे घर से दूर नहीं होगा कोई भी सरकार इसे खतम नहीं कर सकती.