Sunday 30 September 2012


दामाद
--------
दामाद कहने से "मान" की वह मूर्ति सामने आजाती है. जिसे मनाने और उसकी जिद्द पूरी करने में जीवन व्यतीत हो जाता है. जीवन की अंतिम बेला में भी दामाद पीछा नहीं छोड़ता, कोई भी समारोह हो उन्हें निमंत्रित करने उनके घर जाने पर ही वे सम
ारोह में उपस्थित होते है, संचार क्रांति का यह युग उनके लिए बेमानी है. भले ही इस युग के वे ज्ञाता हो लेकिन ससुराल पक्ष को इस तंत्र से दुरी रखने के लिए यह प्रजाति नाना विध प्रयास करती है. बहार वे इस तंत्र की हिमायती है, किन्तु इस तंत्र का निमंत्रण उन्हें स्वीकार नहीं. प्रत्यक्ष निमंत्रण को ही यह जाती स्वीकार करती है. यदि ऐसा नहीं हुआ तो न स्वयं तो नहीं आयेंगे अपनी पत्नी को भी नहीं आने देंगे. बेहद अद्भुत व्यक्तित्व के धनी है, यह प्रजाति. आपसे कही चुक हो गयी तो यह तब तक नहीं मानते जब तक कि नाँक नहीं रगड वा लेते, पता नहीं ऐसा करवाने में क्या मजा आता है. छोटी छोटी बातो का ताड़ बनाना इन्हें बखूबी आता है. ये उम्रदराज होने पर भी अपनी दामादगिरी नहीं छोड़ पाते. इस युग में भी क्या ? यह प्रासंगिक है, यह तब ठीक था, जब शिक्षा का स्तर काफी कम था ? आज यह प्रतिशत बढ़ गया है. दामाद पढे लिखे और समझदार है, ससुराल का इशारा समझने में सक्षम है. इसलिए दामाद के साथ परिवार की पृष्ठभूमि भी देखकर लड़की के योग्य वर का चुनाव किया जाता है ? फिर दो चार लड़की पति दामाद बन ही जाते है. दामाद को लड़के के बराबर का दर्जा है. इस तांत्रिक युग में भी २० किलोमीटर जाकर उन्हें निमंत्रित करना क्या संभव और उचित है ? क्या टेलीफ़ोन के माध्यम से की गयी अनुनय विनय पर्याप्त नहीं है ? क्या हमारा ससुराल पक्ष की कठिनाई जानने का दायरा क्या कम नहीं हो रहा है ? हो सकता है कि ससुराल पक्ष के सवांद में कुछ कमी हो तो क्या उसे सुधारने की जिम्मेदारी इन दामाद रूपी लडको की नहीं है ? ससुराल पक्ष को नीचा दिखाना से इनकी कामना पूरी हो जाती है ? यदि ऐसा है तब यह दुखद है, ससुराल पक्ष भी क्या उसके परिवार में शामिल नहीं है. अपने घर के समारोह में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना यदि इनका कर्तव्य में शामिल है तब ससुराल पक्ष के समारोह में कोई भी बहाना बनाकर उससे दुरी रखना इस पक्ष को क्या दुखी करना नहीं है ? आज भी ऐसा ही रहा है, परिवार का कोई भी दामाद रुष्ट हो जाता है, तब परिवार के सदस्य परिवार के मुखिया को इतना जलील करते है कि मुखिया को लगता है, इससे तो मरना भला है. यदि यही नहीं रहेगा तब इनकी खातिरदारी कोन करेगा ? किस पर ये अपनी मनमानी करेंगे. विचारणीय प्रश्न है ?
x

Saturday 29 September 2012

अपमान 
*********
सदानंद एक साधारण व्यक्ति था,अपना और परिवार का ख्याल ही उसे रहता था, अपने परिवार के लिए वह धनोपार्जन के लिए जीविका भी करता था, चूँकि कठिन मेहनतऔर विषय का ज्ञान नही होने के कारण जीविका को चलाने मे उसे भली बुरी सुनना पड़ता था, वह सुनता भी था. कभी कभी तो उसे बुरी तरह से अपमानित भी किया जाता था, जीविका से परिवार चल रहा है, यही बात उसे सब सहने को बाध्य करती थी, खैर जैसा भी हो परिवार चल रहा था, सदानंद और उसका परिवार एक रिश्तेदार के यहा किसी धार्मिक कार्यक्र्म मे गया, इस कार्यक्रम मे अनेक उसके परिचित भी आये थे. करीब के रिश्तेदार भी थे, आयोजन करता ने सबके रहने और खाने पीने की अच्छी व्यवस्था की थी, कोई भी रिश्तेदार नाखुश न हो, खुद सबका कुशल क्षेम पूछता और उनकी तकलीफों को दूर करता, आयोजन करता ने उनकी खातिरदारी की कोई कसर नहीं छोड़ी थी, सब आगंतुक प्रसन्न थे, सदानंद के साथ एक सहकर्मी जो दुसरे शहर में उसीके विभाग में नौकरी करता था, भी ठहरा हुआ था, यह सहकर्मी उसके बारे में सब जनता था, इसीलिए उसने सदानंद को कड़ी मेहनत और ध्यान से काम करने का परामर्श दिया, सदानंद को उसकी यह बात, रास नहीं आयी बल्कि उसे लगा उसका अपमान किया गया है, सदानंद जोर जोर से अपने अपमान की व्यथा कह रहा था, इस व्यथा ने कब झगडे का रूप धारण कर लिया तब पता चला जब आयोजन कर्ता वह आकर उससे क्षमा याचना करने लगा, क्षमा याचना से भी सदानंद का क्रोध शांत नहीं हुआ, सदानंद का सहकर्मी भी इस घटना से दुखी था. इस स्थान से जाने का साधन नहीं होने के बाद भी बिना अधूरे कार्यक्रम को छोडकर चला गया, सदानंद ने आयोजन कर्ता को अपने अपमान के लिए जिम्मेदार मानकर वह भी चला गया. आयोजन कर्ता के सारे प्रयास विफल हो गए, वह भी इस घटना से दुखी था. सदानंद ने हुए अपमान के इस रिश्तेदार से बातचित और व्यवहार सब बंद कर दिया कितु रिश्तेदार ने इस रिश्ते को जीवित रखने का प्रयास जारी रखा लेकिन सदानंद अपनी ही जिद पर अड़ा रहा, जो परायो का अपमान स्वार्थ के कारण सह सकता हो वह अपनों का परामर्श अपने हित में होने के बाद भी अपमान क्यों मानता है.
www.humaramadhyapradesh.com

Saturday 22 September 2012

बाप और बेटा ***************

जब वह छोटा था, पिता के विचारो से काफी प्रभावित था, उसके पिता बड़े ओहदे पर काम करते थे. जब वे गाड़ी में बैठते तब ड्राइवर उनके लिए पहले से दरवाजा खोल कर रखता अपने अफसर के प्रति चालक का यह सम्मान था, बेटे को पिता का यह सम्मान देखकर ख़ुशी होती थी. उसे लगता उसके पिता जी ज्ञानवान तो है ही अपने कर्म क्षेत्र में अपनी मीठी वाणी और मित्रवत व्यवहार के कारण उनके सहकर्मियों के मन वे श्रध्दा का स्थान रखते है. पिता भी कोई सोने का चमच ले कर पैदा नहीं हुए था . पशुवत मेहनत के बदोलत उसने यह पद पाया था. अपने कर्मठता के कारण ही परिवार में ही नहीं अपने कार्य क्षेत्र में ख्याति पायी थी. पिता के कहने से चलकर उसने भी बड़ी पढाई कर अच्छी नौकरी प्राप्त कर ली थी. अब उसको पिता के विचारो में प्रासंगिकता नहीं दिखती थी, जब बाप रिटायर हुआ, तब बेटे ने उनके विचारो में भारी बदलाव पाया. अब सलाह लेना तो दूर वह उन्हें सलाह देता था. बाप इसके विचारो से अपडेट होता था. इसीकारण उसके मित्रो में उसकी अलग पहिचान बन गयी थी. इसी वजह से बेटे के विचारो को वह गंभीरता से लेता था, किन्तु बेटे और उसकी पढ़ी लिखी पत्नी ने बाप के विचारो को महत्व देना छोड़ दिया. बेटा खुद सोचकर निर्णय लेता है , बाप खुश था, वह मानता था की निर्णय केवल निर्णय होता है. कभी गलत होता है कभी सटीक, वह भी तो गलत निर्णयों से सही निर्णय लेना सिखा है, इसीलिए बेटे के गलत निर्णय पर उसे कभी एतराज नहीं था ? उसे इस बात की भी फ़िक्र नहीं थी कि उसकी उपेक्षा हो रही है, वह सोचता था कुछ वर्षो बाद बेटे को भी इसी स्थिति से ही गुजरना है. बाप तो नहीं रहा लेकिन बेटा बाप जैसी उपेक्षा अपने बेटो से सह रहा है. w www.humaramadhyapradesh.com

Friday 14 September 2012

करण और जगन ****************



एक गाव में करण और जगन नाम के दो मित्र रहते थे, बचपन की मित्रता जरा अवस्था तक कायम रही, बचपन तो खेल में बीत गया, जवानी काम धंधे में व्यतीत हो गयी, इसलिए इन दोनों अवस्थाओ में केवल मित्रता रही जादा बातचीत नहीं हो सकी, जरा अवस्था एक ऐसी अवस्था जिसमे काम धंधा कम फुर्सत जादा रहती है, इसीकारण यह दोस्ती अब प्रगाड़ हो गयी,दोनों मंदिर में बैठकर आपस की बाते करते, करण कभी बहु का तो कभी बेटे के उसके प्रति व्यवहार से जगन को अवगत कराता, कभी नाती नत्रो के उसके विरुद्ध क्रिया कलापों को बताता, पत्नी से वह खुश नहीं था, जगन रोज उसकी बाते सुनता और मुस्कुरा देता, परिवार की निंदा करना करण का रोज का विषय था, जबकि जगन परिवार की नहीं देश प्रदेश में चल रही गतिविधियों पर जादा बोलता, कुल मिलाकर दोनों के बातचीत के विषय एकदम अलग अलग थे, एक दिन जब करण ने परिवार विषयक बाते शुरू की तब जगन ने उसे टोका और बोला किसी महान व्यक्ति ने कहा है, परिवार की बाते सार्वजानिक नहीं करना सदैव हितकारी होता है, तुम अपने परिवार से तो दुखी हो मेरे मन भी अपने परिवार के प्रति ग्लानी भर रहे हो, जानते हो करण मै सुखी क्यों हूँ , मैंने परिवार के किसी सदस्य से कभी कोई उम्मीद ही नहीं की, उम्मीद हमेशा दर्द देती है, इस उम्र में अब क्या उम्मीद करना, कन्धा दे या ना दे, शव दाह करे या फेंक दे, हमें क्या फर्क पड़ने वाला है ? हां जीते जी हमारा आशीर्वाद देने का काम तो हमसे कोई नहीं छीन सकता ? कोई काम तो परिवार ने हमें दिया है, यह क्या उनकी महानता नहीं है ? लोक लाज के डर से कभी कभार पूछ भी तो लेते है, आज के इस युग यह सब करना भी कठिन है, बेचारे करते तो है. भी किसी भी अपने घर के सदस्य से उम्मीद करना छोड़ दो, जिस तरीके से ईश्वर रखेगा वैसे ही रहने में हमारी भलाई है.
www.humaramadhyapradesh.com

Thursday 13 September 2012


सुख की नींद 
************
किसान अपनी जमीन में मस्त है, जमीन ही उसकी माँ है, पिता भी वही है, पानी भी उसकी आस पूरी कर देता है, इस कारन २ बच्चो के परिवार को सुख से चला लेता है, अभी बच्चे छोटे है, खर्चा कम होने के कारण बचत कर लेता है. सोचता है बचत से बच्चो को पढ़ा लिखाकर काबिल इन्सान बना देगा, फिर बेटी की शादी कर एकलोते बेटे के सहारे जीवन कट जायेगा. बेटा बेटी बड़ी होने लगे उनकी शिक्षा की चिंता उसे सताने लगी, गाव में बड़े स्कुल नहीं होने के कारण शहर भेजना मज़बूरी हो गयी.  बेटा और बेटी के लिए उनके कालेज के पास ही एक मकान किराये पर ले दिया, गेहू दाल चावल खेत में पकते थे, वह भी पंहुचा दिया, कभी जाकर आटा पीसाकर सब्जी ला देता बेटी खाना बना लेती और भाई के साथ खाकर दोनों भाई बहन पढाई करने में जुट जाते, समय निकलने में देर नहीं लगती बेटा और बेटी दोनों इंजीनियर हो गए. अब बेटी की शादी सर पर थी, रूपवती बेटी होने के कारण पढ़ा लिखा वर भी मिल गया, बेटी की शादी में पैसे की कमी न पड़े इसीलिए एक एकड़ खेत भी बेच दिया, धूम धड़ाके  के साथ शादी भी हो गयी, बेटे की शादी भी अपनी ही बिरादरी की सुन्दर लड़की के साथ कर दी. किसान और उसकी पत्नी का शरीर भी जवाब देने लगा था. पहले जैसी मेहनत नहीं हो पा रही थी, रात में फसल की निगरानी के लिए बोरा बिछाकर सोना भी नहीं हो रहा था, पीठ में दर्द की शिकायत होने लगी थी फिर भी उसने अपना हमेशा का बिस्तर नहीं छोड़ा था. पत्नी ने कहा चलो कुछ दिन बेटे के यहाँ मुंबई जाकर रह लेते है. दोनों बेटे के यहाँ चले गए. बेटे का वैभव में अपनी तपस्या की पूर्णता को देखकर भगवान को धन्यवाद दिया. रात में बेटे ने उनके लिए बनाये एसी के कमरे में सुलाया, बिस्तर में फोम के गद्दों थे, जब किसान सोया तो वह बैचेन हो गया, रात भर नींद नहीं आयी इस करवट से उस करवट बदलने में सुबह हो गयी. बेटे को बुरा लगेगा इसीलिए नहीं बताया. आठ दस दिन बैचेनी में कटे, पत्नी को पीड़ा बतायी, पत्नी ने बेटे से कहा बेटा पिता जी का बिस्तर बहार वरांडे में लगा दो और पलंग पर ३-४ बोरे का  गदा बना दो. बेटे ने कहा माँ ऐसे कैसे होगा, माँ ने कहा बेटा जो आदमी जिन्दगी भर खुली हवा में बोरो पर सोया हो, वह एसी में फोम के गद्दे पर कैसे सो सकता है ? वरांडे पर लगाये बिस्तर पर किसान इतनी गहरी नींद में सोया, जब आंख खुली तब सुबह के सात बजे थे. पत्नी से कहा आज सुख की नींद सोया.
www.humaramadhyapradesh.com