Thursday 11 September 2014
अंतर नहीं है -----------
छोटे बच्चों और बुजुर्गो में काफी बड़ा अंतर नहीं है ,एक उतरार्ध जीवन से नवजीवन में आने को आतुर है वही नवजीवन धीरे धीरे उतरार्ध जीवन की और जाने को तत्पर है. दोनों में एक ही ललक है. दोनों अपनी बात अपने अपने तरीके से मनवाना जानते है. दोनों के अंग एक हद तक ही साथ देते है. दोनों को सहारे की जरुरत है. एक बोल सकता है दूसरा बिन बोले ही अपनी बात कह सकता है. दोनों नेचुरल काल्स को नहीं जानते. फिर भी दोनों में अंतर किया जाता है? इसका कारण भी है एक ने दुनिया देखी है जबकि दूसरा दुनिया को देखने की तैयारी कर रही है. यही कारण है कि हम बुजुर्गो को उपेक्षित कर रहे है वही दूसरे को गले से लगा रहे है ताकि ये छोटे बच्चे दुनिया देख सके. दोनों का संघर्ष एक जैसा ही होने के कारण इन दोनों में अंतर की जरुरत नहीं है ?
Tuesday 9 September 2014
पित्रपक्ष :- बेटो की गलतियों को मा बाप कभी गंभीरता से नहीं लेते।
आज फेस बुक पर पढ़ा कि जिन बेटो ने अपने माँ बाप को उनके जीवन काल में कभी सुख नहीं दिया हो वे श्राध कर क्यों दिखावा कर रहे है? मेरे विचार से लेखक ने यह पोस्ट लिखने से पहले माँ बाप की भावनाओ का विचार नहीं किया ? बेटा उन पर कितने भी जुल्म करे कभी बददुआ नहीं देते है उनके इस कृत्य को बचपना कहकर हमेशा माफ़ करते है। बेटो का यह जुल्म कुछ समय तक इनके दिलोदिमाग पर होता है बाद में उसी बेटे को अपना लाडला मानते है. माँ बाप पर ज्यादती के लिए सरकारी कानून बनने के बाद इस कानून का उपयोग अधिकांश माँ बाप ने नहीं किया है. यह भी समझे कि बेटे की जिम्मेदारी अपने बेटो में बट जाने के कारन माँ बाप पर गुस्सा निकालता हो, माँ बाप के अलावा उसके पास गुस्सा जाहिर करने के लिए है भी कोन? वह यह जानता है कि माँ बाप माफ़ कर देंगे किन्तु आज कल की पत्नियों पर उसका यह विश्वास नहीं है. माँ बाप पर अत्याचार विचारो की भिन्नता और सम्पति के कारन हो सकते है. माँ बाप जब बेटे पर आश्रित है तब उन्होंने अपने विचारो को विराम देना चाहिए और बेटे के विचारो को गीता मानकर उस पर अमल करना चाहिए इससे विचारो का टकराव बचेगा? रही सम्पति की बात तो वह बेटा देख ही रहा है ? पूर्ण स्वामित्व नहीं मिलने का मलाल हो सकता है ? जीवन के संग्राम ये बहुत छोटी बाते है. अन्त्य क्रिया और श्राद्ध करना बेटो का शास्त्रो द्वारा दिया गया अधिकार है. यह भी माने के बेटे ने जीवन भर माँ बाप को दुःख दिया तब दिए गए दुखो का प्रायःचित वह श्राद्ध कर क्या नहीं कर सकता? माँ बाप को वेदना दे कर एक गलती तो की तब उनकी मुक्ति के लिए श्राद्ध नहीं करना उसकी दूसरी गलती नहीं होगी ? मेरे विचार से माँ बाप के जीवन काल में बेटे जो भी गलती हुयी हो उसके लिए क्षमा मांगते हुए उनका श्राद्ध निश्चित करना चाहिए इससे पुरखे प्रसन्न ही होंगे और आपका हमेशा मंगल हो यही आशीर्वाद देंगे।
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Monday 1 September 2014
स्वतंत्रता सबको भांति है. *************************
स्वतंत्रता सबको भांति है.
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हर व्यक्ति को स्वतंत्रता भांति है. पशु हो या पक्षी स्वतंत्रता चाहते है. भले ही लालमणि को सोने के पिंजरे में कैद कर दो और लाल मिर्ची खिलाओ वह अच्छा बोलेगा. आप जैसा सिखायोगे वही सीखेगा. रामायण सिखायोगे रामायण सीखेगा. उसके पास कोई विकल्प नहीं ? विकल्प मिलते ही वह उड़ जायेगा और सब भूल जायेगा और अपने मित्रों की बोली ही बोलेगा जो उसके साथी बोलते है? कुते को आप कैद कर लो आपकी बोली सीख जायेगा जैसा बोलोगे वैसा ही करेगा ? जमीन पर सोने वाला यह केतु फोम की गद्दी पर सोयेगा? सोने की चैन पहनाओगे पहनेगा इसके सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं है ? किन्तु एक बात सत्य है कि जब भी उसे मौका मिलेगा वह भाग कर अपनी जमात में घुल मिल जायेगा ? सार यह है कि स्वतंत्रता सबको अच्छी लगती है ? हम इनको कैद कर जैसा चाहो मना लेंगे किन्तु ये दिल से कभी स्वीकार नहीं करेंगे? अपने संस्कार के अनुसार ही ये बर्ताव करेंगे. इसमें कोई शक सुबह नहीं होनी चाहिए ? पत्नी बेटो को भी स्वतंत्रता का मोह है ? इसीलिए वानप्रस्थ का मार्ग अपनाने का हमारे ग्रंथो में उल्लेख है ? न हम स्वतंत्र रहते है न दूसरे को इस स्वतंत्रता का लाभ लेने देते है. मोह माया के जाल में फंसे है. न खुद मोक्ष में जाने को तैयार है और नाही दूसरे को जाने दे रहे है. अजीब मोहमाया है कैद में रहते है जैसा कहो करते है फिर भी मुक्ति का मार्ग नहीं खोज रहे है ? इसे ही मनुष्य जीवन कहते है जबकी पशु पक्षी मौका मिलते ही सब छोड़ जाते है ? ये हमेशा कैद से निकलने की हमें शिक्षा देते है. सारी सुख सुविधा को ये त्याग कर हमारे लिए उदाहरण बन जाते है .
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हर व्यक्ति को स्वतंत्रता भांति है. पशु हो या पक्षी स्वतंत्रता चाहते है. भले ही लालमणि को सोने के पिंजरे में कैद कर दो और लाल मिर्ची खिलाओ वह अच्छा बोलेगा. आप जैसा सिखायोगे वही सीखेगा. रामायण सिखायोगे रामायण सीखेगा. उसके पास कोई विकल्प नहीं ? विकल्प मिलते ही वह उड़ जायेगा और सब भूल जायेगा और अपने मित्रों की बोली ही बोलेगा जो उसके साथी बोलते है? कुते को आप कैद कर लो आपकी बोली सीख जायेगा जैसा बोलोगे वैसा ही करेगा ? जमीन पर सोने वाला यह केतु फोम की गद्दी पर सोयेगा? सोने की चैन पहनाओगे पहनेगा इसके सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं है ? किन्तु एक बात सत्य है कि जब भी उसे मौका मिलेगा वह भाग कर अपनी जमात में घुल मिल जायेगा ? सार यह है कि स्वतंत्रता सबको अच्छी लगती है ? हम इनको कैद कर जैसा चाहो मना लेंगे किन्तु ये दिल से कभी स्वीकार नहीं करेंगे? अपने संस्कार के अनुसार ही ये बर्ताव करेंगे. इसमें कोई शक सुबह नहीं होनी चाहिए ? पत्नी बेटो को भी स्वतंत्रता का मोह है ? इसीलिए वानप्रस्थ का मार्ग अपनाने का हमारे ग्रंथो में उल्लेख है ? न हम स्वतंत्र रहते है न दूसरे को इस स्वतंत्रता का लाभ लेने देते है. मोह माया के जाल में फंसे है. न खुद मोक्ष में जाने को तैयार है और नाही दूसरे को जाने दे रहे है. अजीब मोहमाया है कैद में रहते है जैसा कहो करते है फिर भी मुक्ति का मार्ग नहीं खोज रहे है ? इसे ही मनुष्य जीवन कहते है जबकी पशु पक्षी मौका मिलते ही सब छोड़ जाते है ? ये हमेशा कैद से निकलने की हमें शिक्षा देते है. सारी सुख सुविधा को ये त्याग कर हमारे लिए उदाहरण बन जाते है .
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