महाराष्ट्रियन शादी में " विहिनी ची पंगत " एक महत्व पूर्ण समारोह होता है. एक मायने में पूरी शादी का समापन समारोह यही होता है, शादी का यह कार्यक्रम लड़के की माँ के लिए होता है, जो लड़की वालो की समधन है, नाना प्रकार के मिष्टान के साथ करेले का बेला इस पगंत का खास मेहमान होता है, विहीन को पंगत में पहुचने के लिए जाने वाले रास्ते को फूलो से बनाया जाता है. रास्ते के अंत में विहीन के पैर धोये जाते है. इन सब के बाद अपने करीबियों के साथ विहीन लड़के और बहु के बीच में बैठकर भोजन की शुरुवात करती है. पंगत को मजेदार बनाने के लिए एक दुसरे से पति और पत्नी के नाम लेने के लिए उखानो का आग्रह होता है.उन उखानो से कुछ मिनटों की पगंत घटो के बदल जाती है, इसकी तैयारी के लिए वधु पक्ष के लोग भारी मेहनत कर विहीन को प्रसन्न रखने का उपक्रम करते है. इस पक्ष के लोग इस पगंत में कही कोई कमी न हो इसका ध्यान रखने के लिए पुरे समय स्वयं सेवक की भूमिका निभाते है. भोजन के अंत में दूध से विहीन के हाथ धुलाये जाते है, और चांदी की लौग से सत्कार किया जाता है. इस महत्व पूर्ण पगंत के बाद ही वधु पक्ष भोजन करता है. प्रश्न यह है कि यदि वधु पक्ष के लिए वर की माँ यदि विहीन है तब वर पक्ष के लिए वधु की माँ भी तो समधन होती है, समधनो की सामूहिक पंगत और वर की माँ जैसा सत्कार वधु की माँ का क्यों नहीं किया जाता. यदि ऐसा किया जाय तो यह पंगत और आनन्द दायक के साथ समय की भी बचत हो सकती है. चांदी की लौंग और दूध से हाथ धुलाना आज प्रासंगिक नहीं है.
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