देश मे विचित्र स्थिति है। कही मासूमो को शिकार बनाया जा रहा है। कही पैसो के कारण एक दूसरे के दुश्मन बन रहे है। मीडिया और समाचार पत्र इन्ही दो बातों पर अपनी रोजी रोटी कमा रहे है। मैंने अनेकों लेख मे यह बताया है कि जब व्यक्ति लक्ष्मी से भरपूर हो जाता है। तब ही सेक्स की बीमारी उसको लग जाती है। लक्ष्मी को सम्हालना कोई सरल नहीं है? वह अपने साथ अनेक दुर्गुणो को साथ ले कर आती है। यही अवगुण किसी को रेप करता है या किसी का खून करता है। यह सब होने के बाद लक्ष्मी चली जाती है। अनेक कार्पोरेट जगत में बेहद लक्ष्मी है। वहा सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है।
५ साल की मासूम लड़की के साथ अनैतिक कार्य कोन कर सकता है? जिस बेटी का हमें लाड़ प्यार करना चाहिए वही बेटी हवस का शिकार होती है। यह शर्मनाक घटना रोज हो रही है। अनेक ऐसी घटनाये रोज होती है,जिसका हिसाब हमारे पास नहीं है। जो पकड़ा जाए वही चोर होता है। अपने घर ओर बेटे बेटियों के सुरक्षित जीवन के लिये हर माँ कुर्बान हो रही है? यह बात अलग है कि हर माँ इस घटना को सामने नहीं आने देती। सर्व शक्तिमान व्यक्ति हर वो कृत्य रोज करता है जो उसे पसंद हो, इसमें अपनी पी ए के साथ मौज मजा करना ओर उसकी मज़बूरी का लाभ उठाना उनका नित्य कर्तव्य है। मजा मौज करना आम है, यह संस्कृति का अंग हो गया है। कारपोरेट जगत की यह संकृति ही आज मासूमो के साथ अत्याचार कर रही है। सुन्दर महिला क्या दिखी लार टपकना शुरू हो जाता है। कब तक कोई अपनी बात से इन्हें बहला सकता है ? शिकार मासूम बेटिया ओर उनकी माँ हो रही है। हमारी ही फसल को ये धनवान उपभोग कर रहे है। यह देश संस्कारो का देश है। यहाँ कन्याओ को भोजन कर पूजा जाता है। नारी को शक्ति के रूप विराजमान किया जाता है, साथ ही अबलाओ का सहारा हम ही बनते है। फिर क्यों हम सेक्स के पीछे भाग रहे है? बड़ा प्रश्न है। कोई भी बड़े पद पर बैठा व्यक्ति इसका उत्तर देने के काबिल नहीं है। लक्ष्मी का यथोचित सत्कार नहीं करने के कारण ही ऐसी विकृति का हम सामना कर रहे है। अब तक जितनी ऐसे ऐसी घटनाये हुयी है उनका इतिहास निकाल कर देखे तब पता चलेगा कि यह कृत्य किसी मजदुर ने नहीं किये है। बाप के पद का ही यह कारनामा है। सामान्य सिद्धांत यह है कि जब तक पेट की भूख शांत नहीं होती दूसरी भूख की कल्पना ही नहीं की जा सकती। सरकार का भी एक वलय है। उसे हर घटना के लिये जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता किन्तु यह भी सही है कि सरकार के नौकर ही ऐसी घटनाओ के प्रति दुर्लक्ष करे तब सरकार को जवाब देने के लिये जगाया जा सकता है। देश में यह हो रहा है निश्चित रूप क्रांति की आहट है। देर भले ही हो न्याय मिलने वाला है। यह विकृतिया ९० के दशक से बढ़ी है ओर अब चरम सीमा पर है। हमारे संस्कार ही इन जड़ो में मठा डालने की बजाय पोषित जल दे रहे है।