Sunday 21 April 2013

देश के ये कालिख..........



देश मे विचित्र स्थिति है। कही मासूमो को शिकार बनाया जा रहा है। कही पैसो के कारण एक दूसरे के दुश्मन बन रहे है। मीडिया और समाचार पत्र इन्ही दो बातों पर अपनी रोजी रोटी कमा रहे है। मैंने अनेकों लेख मे यह बताया है कि जब व्यक्ति लक्ष्मी से भरपूर हो जाता है। तब ही सेक्स की बीमारी उसको लग जाती है। लक्ष्मी को सम्हालना कोई सरल नहीं है? वह अपने साथ अनेक दुर्गुणो को साथ ले कर आती है। यही अवगुण किसी को रेप करता है या किसी का खून करता है। यह सब होने के बाद लक्ष्मी चली जाती है। अनेक कार्पोरेट जगत में बेहद लक्ष्मी है। वहा सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है।
५ साल की मासूम लड़की के साथ अनैतिक कार्य कोन कर सकता है? जिस बेटी का हमें लाड़ प्यार करना चाहिए वही बेटी हवस का शिकार होती है। यह शर्मनाक घटना रोज हो रही है। अनेक ऐसी घटनाये रोज होती है,जिसका हिसाब हमारे पास नहीं है। जो पकड़ा जाए वही चोर होता है। अपने घर ओर बेटे बेटियों के सुरक्षित जीवन के लिये हर माँ कुर्बान हो रही है? यह बात अलग है कि हर माँ इस घटना को सामने नहीं आने देती। सर्व शक्तिमान व्यक्ति हर वो कृत्य रोज करता है जो उसे पसंद हो, इसमें अपनी पी ए के साथ मौज मजा करना ओर उसकी मज़बूरी का लाभ उठाना उनका नित्य कर्तव्य है। मजा मौज करना आम है, यह संस्कृति का अंग हो गया है। कारपोरेट जगत की यह संकृति ही आज मासूमो के साथ अत्याचार कर रही है। सुन्दर महिला क्या दिखी लार टपकना शुरू हो जाता है। कब तक कोई अपनी बात से इन्हें बहला सकता है ? शिकार मासूम बेटिया ओर उनकी माँ हो रही है। हमारी ही फसल को ये धनवान उपभोग कर रहे है। यह देश संस्कारो का देश है। यहाँ कन्याओ को भोजन कर पूजा जाता है। नारी को शक्ति के रूप विराजमान किया जाता है, साथ ही अबलाओ का सहारा हम ही बनते है। फिर क्यों हम सेक्स के पीछे भाग रहे है? बड़ा प्रश्न है। कोई भी बड़े पद पर बैठा व्यक्ति इसका उत्तर देने के काबिल नहीं है। लक्ष्मी का यथोचित सत्कार नहीं करने के कारण ही ऐसी विकृति का हम सामना कर रहे है। अब तक जितनी ऐसे ऐसी घटनाये हुयी है उनका इतिहास निकाल कर देखे तब पता चलेगा कि यह कृत्य किसी मजदुर ने नहीं किये है। बाप के पद का ही यह कारनामा है। सामान्य सिद्धांत यह है कि जब तक पेट की भूख शांत नहीं होती दूसरी भूख की कल्पना ही नहीं की जा सकती। सरकार का भी एक वलय है। उसे हर घटना के लिये जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता किन्तु यह भी सही है कि सरकार के नौकर ही ऐसी घटनाओ के प्रति दुर्लक्ष करे तब सरकार को जवाब देने के लिये जगाया जा सकता है। देश में यह हो रहा है निश्चित रूप क्रांति की आहट है। देर भले ही हो न्याय मिलने वाला है। यह विकृतिया ९० के दशक से बढ़ी है ओर अब चरम सीमा पर है। हमारे संस्कार ही इन जड़ो में मठा डालने की बजाय पोषित जल दे रहे है।

Monday 15 April 2013

मोदी या सुषमा, -----------


मोदी या सुषमा,
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एक जमाना था जब संघ का स्वयंसेवक जनसंघ मे जाता था। इन्हें के राजनीती के दुश्मन भी इनकी ईमानदारी पर आँख बंद कर भरोसा करते थे। उस युग के जनसंघ के नेता पूजनीय थे। उनका दामन साफ था। जो कुछ भी करते अपने स्वयं सवेक के लिये करते थे। उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं था। मै दो तीन ऐसे लोगो को जानता हूँ जो आज भी घर घर में वन्दनीय है। उनमे से एक स्वर्गीय प्रतुल चंद द्विवेदी है। जो संघ के उस समय के नामी गिरामी प्रचारक थे। मेरे गृह नगर छिंदवाडा में हर कोई उन्हें सम्मान से देखता था। उस समय के कलेक्टर भी उन्हें सम्मान देते थे, मास्टर साहब के नाम से जाने जाते थे। बी जे पी में आये दुर्भाग्य से एक भी चुनाव नहीं जीत सके। बीजीपी ने नहीं कमलनाथ ने उनके घर के पास उनकी मूर्ति लगायी। वे आज भी सबके दुलारे है। संघ की शिक्षा के अनुसार वे किसी को दुश्मन नहीं मानते थे। सबके लिये वे आदरणीय थे। आज भी है। दूसरे श्री सुदरलाल शक्रवार है जिनकी गिनती संघ के हार्डकोर नेताओ में होती है। एक समय तक साथ देना इनका स्वभाव है। शिवराज जी ने इन्हें शायद कोई पद दिया था। उस पद की गरिमा को बखूबी निभाया न कोई हल्ला था ना कोई गुल्ला। अनुशासित स्वयं सेवक के रूप में इनकी गणना होती है। ये य्वाव्हरिक नहीं थे जबकि प्रतुल जी व्यवहारिक थे। इसीकारण लोकप्रियता में कोई भी प्रतुल जी की बराबरी नहीं कर सकता था यही वह कारण था कि प्रतुल जी एक भी चुनाव नहीं जीते। कमलनाथ से हमेशा हारे। मैदान में पराजित योध्या का कोई स्थान नही होता किन्तु यह अपवाद ही था कि विजेता उनके हर सुख दुःख में शामिल रहा था । ऐसा विजेता मिलना कठिन है। प्रतुल जी के स्वाभाव में गैरो को भी अपना बना लिया था । आज भी कमलनाथ उनके प्रशंसक है। यही मोदी ओर सुषमा स्वराज में अंतर है। सुषमा आयातित है जबकि मोदी की जमीन यही है। मोदी का धरातल है जबकि सुषमा जी बिना धरातल के ही हवा में उड़ रही है। महिला होने के नाते सहानुभुती हो सकती है। सुंदर भाषण को अपने आचरण में डालना तपस्या है। इस तपस्या में मोदी आगे है। आज भी मोदी के कायल लोग है। कश्मीर से कन्या कुमारी तक यह फैले है जबकि सुषमा जी का सर्किल मोदी के सामने बहुत छोटा है। मोदी एक व्य्वाहरिक नेता है इसीलिए वे प्रधान मंत्री के रूप में जादा सफल हो सकते है। शिव को बी जे पी की कार्य कारणी में जगह नहीं मिली उसकी प्रतिक्रिया भी सुषमा जी को सामने खड़ा करना हो सकती है। शिव के राज का भी कमाल है कुछ दिन उमा के कारण चला, बाबूलाल जी इसे आगे बढ़ाया। शिव की साधना के भरोसे यह राज अब तक टिका हुआ है। इस राज में शिव कान के कचे है जो कहे वही कर देते है। केवल साधना इन्हें मंजिल तक ले जाती है। शिव के राज का यही राज है। संघ ओर बीजेपी का इस राज जो नुकसान हुआ उसे कभी भरा नहीं जा सकता। शिव भी विद्यर्थी परिषद से आयातित है किन्तु संघ के तपस्या का मीठा फल खा रहे है।
www.humaramadhyapradesh.com

मोदी या सुषमा, -----------


एक जमाना था जब संघ का स्वयंसेवक जनसंघ मे जाता था। इन्हें के राजनीती के दुश्मन भी इनकी ईमानदारी पर आँख बंद कर भरोसा करते थे। उस युग के जनसंघ के नेता पूजनीय थे। उनका दामन साफ था। जो कुछ भी करते अपने स्वयं सवेक के लिये करते थे। उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं था। मै दो तीन ऐसे लोगो को जानता हूँ जो आज भी घर घर में वन्दनीय है। उनमे से एक स्वर्गीय प्रतुल चंद द्विवेदी है। जो संघ के उस समय के नामी गिरामी प्रचारक थे। मेरे गृह नगर छिंदवाडा में हर कोई उन्हें सम्मान से देखता था। उस समय के कलेक्टर भी उन्हें सम्मान देते थे, मास्टर साहब के नाम से जाने जाते थे। बी जे पी में आये दुर्भाग्य से एक भी चुनाव नहीं जीत सके। बीजीपी ने नहीं कमलनाथ ने उनके घर के पास उनकी मूर्ति लगायी। वे आज भी सबके दुलारे है। संघ की शिक्षा के अनुसार वे किसी को दुश्मन नहीं मानते थे। सबके लिये वे आदरणीय थे। आज भी है। दूसरे श्री सुदरलाल शक्रवार है जिनकी गिनती संघ के हार्डकोर नेताओ में होती है। एक समय तक साथ देना इनका स्वभाव है। शिवराज जी ने इन्हें शायद कोई पद दिया था। उस पद की गरिमा को बखूबी निभाया न कोई हल्ला था ना कोई गुल्ला। अनुशासित स्वयं सेवक के रूप में इनकी गणना होती है। ये य्वाव्हरिक नहीं थे जबकि प्रतुल जी व्यवहारिक थे। इसीकारण लोकप्रियता में कोई भी प्रतुल जी की बराबरी नहीं कर सकता था यही वह कारण था कि प्रतुल जी एक भी चुनाव नहीं जीते। कमलनाथ से हमेशा हारे। मैदान में पराजित योध्या का कोई स्थान नही होता किन्तु यह अपवाद ही था कि विजेता उनके हर सुख दुःख में शामिल रहा था । ऐसा विजेता मिलना कठिन है। प्रतुल जी के स्वाभाव में गैरो को भी अपना बना लिया था । आज भी कमलनाथ उनके प्रशंसक है। यही मोदी ओर सुषमा स्वराज में अंतर है। सुषमा आयातित है जबकि मोदी की जमीन यही है। मोदी का धरातल है जबकि सुषमा जी बिना धरातल के ही हवा में उड़ रही है। महिला होने के नाते सहानुभुती हो सकती है। सुंदर भाषण को अपने आचरण में डालना तपस्या है। इस तपस्या में मोदी आगे है। आज भी मोदी के कायल लोग है। कश्मीर से कन्या कुमारी तक यह फैले है जबकि सुषमा जी का सर्किल मोदी के सामने बहुत छोटा है। मोदी एक व्य्वाहरिक नेता है इसीलिए वे प्रधान मंत्री के रूप में जादा सफल हो सकते है। शिव को बी जे पी की कार्य कारणी में जगह नहीं मिली उसकी प्रतिक्रिया भी सुषमा जी को सामने खड़ा करना हो सकती है। शिव के राज का भी कमाल है कुछ दिन उमा के कारण चला, बाबूलाल जी इसे आगे बढ़ाया। शिव की साधना के भरोसे यह राज अब तक टिका हुआ है। इस राज में शिव कान के कचे है जो कहे वही कर देते है। केवल साधना इन्हें मंजिल तक ले जाती है। शिव के राज का यही राज है। संघ ओर बीजेपी का इस राज जो नुकसान हुआ उसे कभी भरा नहीं जा सकता। शिव भी विद्यर्थी परिषद से आयातित है किन्तु संघ के तपस्या का मीठा फल खा रहे है।www.humaramadhyapradesh.com