Saturday 17 November 2012

ध्येयवान -----------



हर व्यक्ति अपना लक्ष्य बनाता है, उसी लक्ष्य को पाकर वह दम लेता है, अर्जुन ने भी भगवान कृष्ण के सहारे अपने लक्ष्य को निर्धारित किया। हनुमान की रामभक्ति भी इसी का नमूना है.आज भी उस भक्ति को एक सेवक के तौर पर याद किया जाता है,हर कठिन समय में हम राम बनकर हनुमान जी से अपनी रक्षा की कामना करने पर ही वे कामना पूर्ण करते है, व्यवासयिक युग में हर कोई व्यावसायिक बनकर अपने को आगे करने के लिये जी जान लगा रहे है, यह निश्चित है यह युग जीत रहा है, इसका एक मात्र कारण हमारी कमजोरी है, अलग अनुभव आते है, हर किसी के पास तुरंत समाधान के लिये जाते, पता नहीं ये हमारी समस्या का समाधान कर रहे है, या नहीं,हमारी निष्ठा को धोका खा रही है, हमेशा हमें इस आंकलन में हमें मुह की खानी पड़ती है, स्वामी विवेकानंद ने अपने उदेश्य प्राप्ति के लिये जीवन लगाकर सांसारिक जीवन का मोह त्यागकर एक अनूठा उदाहरण अपने लक्ष्य के बारे में रूप प्रस्तुत किया है। आज भी वे प्रात:स्मरणीय है,इनको सुबह याद करने भर से जीवन का हर दिन उर्जात्मक हो जाता है, धन्य है ईश्वर आपने हमें जीने का सहारा तो दिया। अनेक लोग लोग अपनी उर्जा को भूल रहे है, जिनको सुबह याद करना चाहिए उन्हें भूलकर कही न कही हम अपनी उर्जा खो रहे है? मान अपमान की बात खोज रहे है, यह एक अपनी दशा को दिखाने वाला युग है, जो अपनी कूबत दिखायेगा वही सर्वमान्य होता है, भले उसमे हनुमान की ताकत न हो, अर्जुन जैसा लक्ष्य न हो, विवेकानंद जैस गाम्भीर्य न हो ? उनके जैसा पराक्रम न हो, फिर भी धन के बदोलत वह पूजे जा रहे है, यह उनकी तपस्या हो सकती है, हमारी नहीं । ऐसे लोगो की तपस्या स्वार्थ युक्त होती है, जब चाहे तब यु टर्न ले लेती है, हमेशा अपने मन की ही करते है। अनेक लोग इसके शिकार हुए है । इसके बाद भी चेतना नहीं आयी है? यह हमारी कमजोरी है, इसी का लाभ ये लोग ले रहे क्योकि हमारा कोई उदयेश नहीं, नहीं इसके प्रति हम गंभीर है? प्रासंगिक बाला साहेब ठाकरे है, उन्हें जो उचित लगता था किया, जिसको जो बोलना चाहिए था बोला, अपने दम पर मुंबई को नचाया, जिस नेता चाहे को बुलाया, अपनी बात मनवा ली, ऐसा व्यक्ति उदेश्य को साथ लेकर चलता है, जो महाराष्ट्र की विषय वस्तु थी देश की विषय वस्तु बन गयी, इनके निधन पर हर राजनीती करने वाला व्यक्ति इन्हें अपने आदर्श बता रहा है, पारदर्शी थे,जो कुछ करते थे बता देते थे? चाहे बियर पीने का मामला हो, या अयोध्या के ढाचे को को गिराने का? शेर की तरह अपनी बात बताई। उनके अनुयायी कैसा बर्ताव कर रहे है, इसीमे ठाकरे चुके, आज शिवसेना में व्यवसायिक तत्व आगये है । शायद यह ठाकरे की भूल थी,अनुशासन कायम नहीं कर पाए. ऐसा व्यक्ति बनने के लिये हमेशा अपने ध्येय के प्रति समर्पित होना जरुरी है, ध्येय के साथ और कोई बात नहीं चल सकती, इसे प्राप्त करने के लिये तपस्या की जरुरत है, यह हमें करनी चाहिए, ठाकरे ने कभी दुश्मनों की परवाह नहीं की उन्हें अपने ढंग उन्हें जीने का अवसर दिया और अपने तरीके से परास्त किया, आज भी वे दुश्मनी के काबिल नहीं है। जीवन के गुण चाहे जिससे मिले उसे ग्रहण करने में कोई सकुचाहट नहीं होनी चाहिए ? भगवान राम ने लक्ष्मण को मरणावस्था में रावण के पास भेज कर यह सन्देश दिया है कि दुश्मन भी सीख दे सकते है। हमारा जीवन पारदर्शी हो, ध्येय से न भटके, अपनी बात बेबाक कहे, दुश्मनों की परवाह न करे। दुश्मनों से भी सीखे, भले ही उदेश्य छोटा हो उसे पाकर रहने में ही जीवन की सार्थकता है। जीवन की लम्बाई में नहीं उसके ध्येय प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य है, भले ही जीवन छोटा क्यों न हो जाये।
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Thursday 1 November 2012

विचारों का द्वन्द
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आज़ कल यह देखने मे आता है कि कोई पिता अपने बेटे से परेशान है, कोई बेटा पिता से परेशान है, यही परेशानी आर्थिक नहीं किन्तु वैचारिक है, बेटा जब छोटा होता है, तब वह विचार शून्य होता है, माँ बाप ही उसके विचार होते है, जब वह आत्म निर्भर हो जाता है, तब उसे विचार आते है, और इन्ही विचारो को सब माने यह उसका आग्रह होता है, जबकि पिता के विचार अब उसे अप्रासंगिक लगते है, यही दोनों के अहम का कारण भी बनता है, पिता को भी उनके पिता के साथ ऐसा अनुभव हुआ होगा, पिता ने कई सालो तक अपने विचारो की सरिता परिवार मे बहाई है, अब बेटे को अपनी सरिता बहाने का अवसर देना क्या उचित नहीं, उसके गलत विचारो को ठीक किया जा सकता है,  www.humaramadhyapradesh.com