Saturday 30 August 2014

अहम ब्रह्मास्मि ----------------

अहम ब्रह्मास्मि
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हम बहुत पढ़े लिखे है ,जानकार है, विभिन्न क्षेत्रो का अनुभव हमारे पास है. इस कारन जो भी दूसरा व्यक्ति हमने से बात करता है हमारी योग्यता के सामने हम उसे बौना मानते है और उससे जो व्यवहार करते है उसके कारण वह दुखी हो जाता है. हम एक विषय दो विषय अधिक से अधिक चार पांच विषयो के ज्ञाता हो सकते है. हर काम में कोई व्यक्ति माहिर नहीं है.  अनेक व्यक्ति अनेक  काम करते है वे उनके कामो के विशेषज्ञ होते है.संक्षेप में हर व्यक्ति का ज्ञान कही न कही समाज के लिए उपयोगी होता है. हम इस बात को भूल जाते है और इसीलिए किसी भी व्यक्ति के साथ  हम  अशोभनीय व्यवहार कर बैठते है. किसी के साथ अच्छा व्यवहार  हमारी योग्यता काआईना है. छोटे से छोटे आदमी से हमारा व्यवहार शालीन होना चाहिए भले ही हम कितने बड़े पद पर क्यों न हो. पद तो चंचल है किन्तु व्यवहार सदा याद रहता है. मुझे इस सन्दर्भ में एक किस्सा याद आ रहा है. एक पंडित जी को अपने ज्ञान का बेहद अहंकार था उन्हें नदी पार करनी थी वे एक नौका में बैठ गए. नाविक उन्हें नदी पार कराने लगा, इस बीच पंडित जी ने नाविक से पूछा नाविक तुमने गीता पढ़ी नाविक ने कहा नहीं,  पंडित जी उससे कहा तुम्हारा २५ प्रतिशत जीवन व्यर्थ गया ? नाविक को बुरा लगा. पंडित जी ने नाविक से पूछा तुमने रामायण पढ़ी है उसने कहा पंडित जी नहीं पढ़ी पंडित ने कहा तुम्हारा २५ % जीवन बेकार हो गया, नाविक ग्लानि से भर गया. पंडित जी कहा नाविक तुमने महाभारत सुनी नाविक का उत्तर नहीं में था पंडित जी ने कहा नाविक तुमने इस बहुमूल्य जीवन का ३/४ भाग का कोई उपयोग नहीं किया और यह जीवन प्रभु के काम नहीं आ सका ।  नाविक को लगा की पंडित जी सही कह रहे है ? पंडित जी ने फिर पूछा नाविक  क्या तुमने ईश्वर की कभी पूजा नाविक ने कहा मै पेट और परिवार की चिंता करू या भगवान को पुजू ? पंडित जी ने कहा नाविक मरने के बाद तुम् भगवान को क्या जवाब दोगे ? नाविक ने कहा भगवान को जो जवाब देना है दे दूंगा, नाविक ने जल्दी से एक बात बता दीजिये आपको तैरना आता है. पंडित जी ने कहा नहीं तब नाविक ने कहा आगे तूफान आरहा है मै तो नाव से कूदकर अपनी जान बचा लूंगा आप अपनी जान की फ़िक्र करो ऐसा कहकर नाविक नाव से कूदकर नदी के उस पार चला गया वही पण्डित जी तूफान में फसकर अपनी जान गवा बैठे? यह घटना शिक्षा देती है की हमें हर व्यक्ति के गुणों की कदर करनी चाहिए चाहे वह कितना भी छोटा काम क्यों न कर रहा हो. प्रेम और सदाचरण व्यक्ति  कभी नहीं भूलता है. 

Saturday 23 August 2014

संगत

अनेक लोगो से सुना संगत का असर जीवन बदल देता है. अच्छी संगत आदमी को बड़ा बनाती है वही बुरी संगत आदमी को बुरा बना देती है. मैंने ऐसे व्यक्तियों को देखा जो शराबी के साथ तो रहते है किन्तु उन्होंने आज तक शराब को नहीं छुआ. जुवारी के साथ रहने वाले ने जुआ नहीं खेला . रेल में चाय बेचने वाले की दोस्ती कुली कबाड़ियों और कुछ गिनती के अच्छे लोगो के साथ होती है? फिर भी इन सब के रहते हुए मोदी ने अपनी मंजिल पाकर ही दम लिया। सुदामा और कृष्ण का साथ कही दिनों तक रहा इसके बाद भी सुदामा दरिद्र ही रहे. कर्ण कौरवो के साथ रहा फिर भी उसके पुरुषार्थ को लोग आज भी नमन करते है. मराठी के साहित्यकार शिवाजी सावंत का कर्ण पर लिखे म्रयतंजय में आज भी कर्ण की महानता को पढ़ते है. इस पुस्तक को पढ़ने से लगता है महाभारत का हीरो केवल कर्ण ही है. रावण का भाई विभीषण में रावण के एक भी गुण नहीं थे जबकि कैकयी अपने स्वभाव को नहीं बदल पायी ? वास्तव में व्यक्ति देवीय गुणों के कारन महान और नीच बनता है. सोना कही भी पड़ा रहे सोना ही रहता है जबकि सांप दूध पीकर भी जहर उगलता है. ईश्वर ने किस्मत में जो लिखा वही होता है चाहे आप संगत किसी की भी करे. अपवाद हर जगह होते है.

Sunday 10 August 2014

संत कर्म ----------

संत कर्म 
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जीवन को जीने के लिए सभी अपनी अपनी अपनी हैसियत के अनुसार कर्म करते है. कुछ लोग कर्म करके उसे बेच देते है. इसके बदले उन्हें वेतन और पेंशन मिलती है जबकि कुछ लोग परोपकार या दूसरों की सेवा के लिए कर्म करते है उन्हें इन कर्मो का प्रतिफल हर महीने तो नहीं मिलता परन्तु किसी न किसी रूप में जरुर मिलता है. वे सुखी होते है.और जीवन से संतुष्ट होते है. अब प्रश्न यह है कि यदि कर्मो का फल हर महीने न लिया जाए तब परिवार कैसे चलाएंगे ? इन कर्मो के साथ परोपकार के लिए भी कर्म किये जाए तब इन कर्मो का प्रतिफल संचित होते होते एक मुश्त फल प्राप्त किया जा सकता है. गृहस्थ के लिए किसी को अपने कर्मो से दुखी न करना, किसी का भला हो सके तो करना यही परोपकारी कर्म है. जो बिना फल लिए कर्म करते है वे संतो की श्रेणी में आते है. इन संतो को सादर नमन और कुछ न कुछ परोपकारी कर्म करने वाले गृहस्थों को नमन.

Thursday 7 August 2014

भ्रष्टाचार --------

भ्रष्टाचार
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घर हो या बहार सब और भागम भाग मची है. ये सब आर्थिक रूप से सम्पन बनने की कवायद है. यह भी सच है कि बिना आर्थिकता के परिवार,मित्र और रिश्तेदार भी नहीं जानते? .यह आर्थिक युग है. रिश्ते भी आर्थिक तराजू में तौले जा रहे है. माँ बाप के आर्थिक स्तर के आधार पर ही परिवार में उनका आंकलन हो रहा है. जहा भी जाए आर्थिक स्तर ही देखा जा रहा है . इसीकारण जो लोग अपने कर्तव्य से उतना नहीं कमा पाते है जिससे उन्हें समाज में एक मुकाम मिल सके, अन्य रास्ता अपनाते है. यही से भ्रष्टाचार का उदगम होता. अनेक लोग बेचारी को गंगोत्री को इसके लिए जवाब दार मानते है.गंगोत्री तो एक बहाना है. भ्रष्टाचार तो हर घर से शुरू होता है. भ्रष्टाचार एक व्यापक रूप लिए है. जिसे जो काम सौपा गयाऔर नहीं किया,बेटे ने अपनी पढाई नहीं की, गृहणी ने अपने काम को डंडी मार दी और अफसर ने अपने ईमानदार होने की दुहाई दी और दफ्तर के लोगो से अपने काम करवा रहा है, यही भ्रष्टाचार है. यह जब तक हमारे घर से दूर नहीं होगा कोई भी सरकार इसे खतम नहीं कर सकती.

Wednesday 6 August 2014

आदरणीय महोदय।

देश में वरिष्ठ नागरिको का प्रतिशत प्रतिदिन बढ़ रहा है. जैसे जैसे इनकी संख्या बढ़ रही है वैसे वैसे इनकी समस्या भी बढ़ रही. बेटे विदेशो में काम कर रहे है. वही माँ बाप बुजुर्ग होने से अपना एकाँकी जीवन काट रहे है. उन्हें यदि रात को कोई तकलीफ हो रही हो तब आज की स्थिति में इसका निदान संभव नहीं है ? कुछ NGO ने इनके लिए केयर सेंटर खोले है किन्तु ये केवल नाम के है. न इनके टेलीफोन सुने जाते है और ना ही इनके कष्ट को कोई सुनने आता है. संक्षेप में आज के बुजुर्ग सुखी नहीं है. इन बुजुर्गो ने देश को कभी न कभी कुछ तो दिया ही है. इनकी देखभाल करना सामाजिक और राजनैतिक दायित्व भी है. आज ये बुजुर्ग या तो इतिहास बन गए है या आशीर्वाद देने के काम आ रहे है. कही काम मांगने जाने पर इन्हे उपेक्षित भाव से देखा जाता है. इसीकारण अधिकांश बुजुर्ग काम करने से परहेज कर रहे है. घर में बैठे बैठे खालीपन इनकी उम्र को कम कर रहा है. शाम और सुबह केवल टहलना इनके भाग्य में लिखा है. आज इन बुजुर्गो की सेहत के लिए चिकित्सा एक महत्वपूर्ण कार्य है. हर शहर में निजी डाक्टरों की भरमार है. इन चिकित्सको को वरिष्ट जनों के चिकित्सा का काम सोपा जा सकता है. यह काम ये मुफ्त में करे यह अपेक्षा नहीं है वे इनके इलाज में रियायत दे सकते है और विभीन्न परीक्षणों के शुल्क में कटौती कर सकते है. इनकी आमदनी सीमित होने के अतिरिक्त महंगाई के युग में यह पर्याप्त नहीं है. बुजुर्गो का कर्जा किसी एक वर्ग विशेष पर न होकर पुरे समाज पर है. डाक्टर भी समाज के एक अंग है. इस कारन इनकी चिकित्सा में छूट देकर अपना समाजिक कर्तव्य ही कर रहे है. दवा विक्रेता भी उन्हें दवा खरीदने पर छूट दे सकते है. सरकार की भागीदारी से यह कार्य आसान हो सकता है. आशा है आप सब डाक्टरों को इस कार्य के लिए राजी करने में सहयोग करे. आप मुझसे इस पुनीत कार्य के लिए जुड़ना चाहते है, कृपया नाम के मोबाइल नंबर से मुझे अवगत कराये