Thursday 17 May 2018

एक जंगल का राज्य



सिंह ही जंगल का राजा था,इस शासन ने जंगल में अनेक वर्षो तक राज किया किन्तु जगल की अधोसंरचना धरातल को चली गयी,ना आवागमन के लिए     सड़क थी  और नाही बिजली का प्रदाय व्यवस्थित था.इस राज्य के मुखिया और मंत्री जनता के प्रति उदासीन रहे जनता अत्यधिक त्रस्त थी इसलिए सिंह को गद्दी से हटा दिया और सता वानर सेना को सौप दी. कुछ साल वानर सेना ने ठीक ठाक काम  किया किन्तु वानरों के स्वभाव के अनुसार जिसके हाथ में जो वस्तु है लेकर चलते बनने का युग आ गया.बन्दर और उसके मंत्रियो ने अपने लिए रामराज्य स्थापित  कर लिया जिसके जो मन में आता करता, जिसे लूटना है लूटा जाता जहा चरना है चरता, कुल मिलाकर जो मिले जहा से मिले खाने की आदत पड गयी संक्षेप में जहा भी चारा दिखता चरने की लत लग गयी.सरकार को फिर चुनाव का सामना करना था इसीलए मुखिया को जनता की याद आगई वोट पाने के लिए खजाना खोल दिया.जनता ने जो माँगा वह दिया कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी कर दी किन्तु पेंशनरों को वह लाभ नहीं दिया जिसके वे हकदार थे उनकी 2 साल की  पेंशन सरकार ने डकार ली,वानर सेना का मुखिया जानता था ये बुजुर्ग क्या कर लेंगे ? क्योकि ऐसा ही प्रयोग सेना ने अपने पिछले कार्यकाल में किया था.इस जंगल का पेंशनर नहीं जानता कि आखिर भेदभाव उसके साथ ही क्यों होता है? गरीबो,दलितों किसानो के लिए के अनेक योजनाये शुरू की गयी और वानर सेना ने चुनाव जीत लिया किन्तु जनता की समस्याए जस की तस रही  वही मुखिया और उनके  मंत्रियो ने भूख मिटाने के लिए आय के नये नये साधन खोजमें लग गए. जनता आज भी त्रस्त है केवल सरकार मलाई खा रही है.कुछ बुजुर्ग जा विधी राखे राम ता विधी रहियेके सिधांत पर बचे कुचे दिन काट रहे है.

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